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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना में एक किसान की कहानी सरकारी तंत्र की उदासीनता और लापरवाही की एक दुखद तस्वीर पेश करती है। एक ऐसा मामला सामने आया है जहाँ एक किसान सरकारी योजनाओं के लाभ पाने के लिए 'एक खंभे से दूसरे खंभे' यानी एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर काट रहा है, लेकिन अधिकारी की कथित उदासीनता के कारण उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही है।
यह मामला बताता है कि कैसे सरकारी योजनाओं, जो गरीबों और किसानों की मदद के लिए बनाई जाती हैं, निचले स्तर पर अधिकारियों की लापरवाही के कारण विफल हो जाती हैं। किसान को कृषि सब्सिडी, फसल बीमा या अन्य सहायता जैसे लाभ नहीं मिल पा रहे हैं, जिनकी उसे सख्त ज़रूरत है।
इस किसान को लगातार दस्तावेज़ जमा करने, सत्यापन करवाने और विभिन्न विभागों के चक्कर लगाने को मजबूर किया जा रहा है, लेकिन किसी भी अधिकारी से उसे संतोषजनक जवाब या मदद नहीं मिल रही। यह सिर्फ एक किसान की कहानी नहीं है, बल्कि ऐसे कई अन्य मामले भी हो सकते हैं जहाँ सरकारी उदासीनता के कारण पात्र लाभार्थी अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
यह घटना दर्शाती है कि सरकार की नीतियां कितनी भी अच्छी क्यों न हों, यदि उन्हें जमीनी स्तर पर ठीक से लागू नहीं किया जाता, तो उनका कोई फायदा नहीं होता। इस मामले ने एक बार फिर अधिकारियों की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि किसानों और अन्य ज़रूरतमंदों को बिना किसी बाधा के सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। यह देखना होगा कि इस किसान को कब और कैसे न्याय मिलता है।
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