उत्तरकाशी में गंदगी से भरी टनल के भीतर श्रमिकों ने 130 घंटे से ज्यादा का वक्त बिता लिया है, मगर अभी भी वो वहां फंसे हुए हैं। 41 मजदूर अब स्वास्थ्य दिक्कतों से जूझने लगे हैं। मजदूरों में कब्ज, सिरदर्द के साथ साथ क्लॉस फोबिया और हाइपोक्सिया जैसी कई मानसिक समस्याओं का भी खतरा बढ़ गया है। अफसर निरंतर ये दावा कर रहे हैं कि टनल में फंसे मजदूरों को खाना, पानी और ऑक्सीजन जैसी जरूरी चीजें सप्लाई की जा रही हैं।
वहीं मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि सूखे मेवे, मुरमुरे और पॉपकॉर्न जैसी चीजें दिन में 3 मर्तबा खाने के आदी मजदूरों के लिए काफी कम पड़ती है। ये जाहिर तौर पर उनके स्वास्थ्य को मुसीबत में डाल सकता है।
राजधानी देहरादून के एक बड़े सरकारी चिकित्सक ने कहा कि सुरंग में भारी तादाद में सिलिका की मौजूदगी के कारण मजदूरों को सांस से जुड़ी समस्या हो सकती है। एक सप्ताह तक टनल में फंसे रहने के बाद संभावना है कि उन्हें गंभीर सांस से जुड़ी समस्याएं होंगी। इसके साथ साथ उनमें से कुछ मजदूरों को हाइपोक्सिया की समस्या हो सकती है।
आपको बता दें कि हाइपोक्सिया वो स्थिति है जब बॉडी को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, जिस वजह से उसे चक्कर आना, थकान, सुन्नता, उल्टी जैसी और पांव में झुनझुनी जैसे लक्षण देखने को मिलती हैं और इस दौरान सामान्य ऑक्सीजन लेवल, पल्स रेट और बीपी बनाए रखने में दिक्कत होती है।
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