img

mujra in india: पहले के समय में तवायफ का मुजरा कार्यक्रम देशभर में अलग-अलग जगहों पर होता था। वक्त के साथ ये प्रथा लुप्त हो गई और इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मगर आज मुंबई के एक हिस्से में तवायफ की मुजेर रस्म होती है।

16वीं सदी में मुजरे की अपनी शान थी। राजा से लेकर प्रजा तक हर कोई मुजरा देखना पसंद करता था। उस दौर में मुग़ल दरबार और नवाबी शासन के दौरान मुजरा किया जाता था। आज भी मुंबई के बाचूबाईवाड़ी इलाके में मुजरा किया जाता है। यहां रात 9 से 12.30 बजे तक मुजरा होता है।

आपको बता दें कि मुजरे का इतिहास मुगलों के समय से शुरू होता है, जब दरबारों में नृत्य और संगीत का विशेष महत्व था। उस वक्त तवायफें (नर्तकियाँ) दरबारों में नृत्य करती थीं और उनकी कला को बहुत सराहा जाता था। मुगलों ने इस कला को प्रोत्साहित किया और इसे एक उच्च कला के रूप में मान्यता दी। मुजरे का महत्व केवल एक नृत्य या संगीत शैली तक सीमित नहीं है, बल्कि ये भारतीय संस्कृति, इतिहास और सामाजिक बदलाव का प्रतीक भी है।

मुजरे के दौरान नर्तकियाँ पारंपरिक भारतीय परिधान पहनती हैं, जो उनकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं। आमतौर पर ये लहंगे, चोली और दुपट्टे के साथ सजती हैं। उनके आभूषण और मेकअप भी इस कला रूप का अभिन्न हिस्सा होते हैं। मुजरे में गाया जाने वाला संगीत आमतौर पर ठुमरी, दादरा या अन्य शास्त्रीय रागों पर आधारित होता है। 
 

--Advertisement--