
Up Kiran, Digital Desk: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने हाल ही में कर्नाटक सरकार को कानून और व्यवस्था से जुड़े एक गंभीर मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि सार्वजनिक रूप से दी जा रही धमकियों और आहत भावनाओं के मामलों में उचित कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि अगर ऐसे मामलों में निष्क्रियता बनी रही, तो भावनाओं को आहत करने का यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।
क्या है मामला और SC की चिंता?
पूरा मामला कर्नाटक में सामने आ रही ऐसी घटनाओं से जुड़ा है, जहाँ कुछ लोग 'थग लाइफ' जैसी मानसिकता अपनाकर (यानी, बिना किसी डर या परिणाम की परवाह किए) धमकियां दे रहे हैं या भड़काऊ बयान दे रहे हैं, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों की भावनाएं आहत हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है कि ऐसी धमकियों और बयानों पर राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त और समय पर कार्रवाई नहीं की जा रही है।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की धमकियों और भड़काऊ बयानों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यदि सरकारें ऐसे मामलों में सख्त कदम नहीं उठाती हैं, तो यह न केवल कानून के शासन को कमजोर करता है, बल्कि यह सार्वजनिक शांति और सद्भाव के लिए भी खतरा पैदा करता है। कोर्ट ने यह भी इशारा किया कि इस तरह की निष्क्रियता से समाज में अराजकता फैल सकती है और लोग कानून को अपने हाथ में लेने को मजबूर हो सकते हैं।
कानून का शासन और सरकार की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को अपनी जिम्मेदारी याद दिलाई कि कानून का शासन बनाए रखना और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनका परम कर्तव्य है। धमकियों या भावनाओं को आहत करने वाले किसी भी कृत्य पर तुरंत और निष्पक्ष कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे आरोपी कोई भी हो। यह न केवल अपराधियों को सबक सिखाएगा, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में भी मदद करेगा।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि न्यायिक प्रणाली देश में कानून व्यवस्था और सामाजिक शांति बनाए रखने के लिए कितनी गंभीर है। अब देखना होगा कि कर्नाटक सरकार इस फटकार के बाद क्या कदम उठाती है और ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने में कितनी सफल होती है।
--Advertisement--