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Up Kiran , Digital Desk: उत्तरकाशी की पहाड़ियों में आज सुबह फिर एक दर्दनाक चीख गूंज उठी। एक और हेलीकॉप्टर हादसा, एक और चेतावनी की अनदेखी और छह और ज़िंदगियां जिन्होंने गंगोत्री धाम की ओर रुख किया था, लौटकर कभी नहीं आएंगी। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील और पर्वतीय राज्य में यह कोई पहला हादसा नहीं है मगर हर बार यह एक नया ज़ख्म छोड़ जाता है।
ये हादसे महज संयोग नहीं, सिस्टम की नाकामी
अगर हम पिछले एक दशक में हुए हेलीकॉप्टर हादसों का डाटा देखें, तो एक बात साफ़ हो जाती है ये घटनाएं अब ‘असामान्य’ नहीं रहीं। खराब मौसम में उड़ान, घाटियों में विजिबिलिटी की अनदेखी, रूट उल्लंघन और एविएशन कंपनियों की लापरवाही, इन मौतों के पीछे की मुख्य वजह बनती जा रही हैं।
मौसम विभाग ने 7 और 8 मई के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया था। भारी बारिश, ओलावृष्टि और अंधड़ की चेतावनी थी। इसके बावजूद आज सुबह जब हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी, तो क्षेत्र में बारिश हो रही थी। सवाल उठता है किसकी अनुमति से उड़ान भरी गई? क्या इन हादसों की जिम्मेदारी तय होगी, या यह चुप्पी फिर से लोगों की जान पर भारी पड़ेगी।
केदारनाथ से गंगोत्री तक: हादसों की लंबी और भयावह सूची
2013 की आपदा, जिसमें राहत कार्य कर रहे एमआई-17 हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से 20 जवानों की जान गई।
2018, जब बिजली के तार में उलझकर सेना का हेलीकॉप्टर टूटकर गिर गया।
2022, जब केदारनाथ से उड़ान भरते समय गरुड़चट्टी में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ और 7 लोगों की मौत हुई।
2023 और 2024, लगातार इमरजेंसी लैंडिंग, तकनीकी खराबी और एयर ट्रैफिक की लापरवाही की खबरें सामने आईं।
हर हादसे में एक ही पैटर्न दिखता है प्राकृतिक जोखिमों की अनदेखी, नियमों का उल्लंघन और निगरानी व्यवस्था की कमजोरी।
तीर्थ यात्रा या जोखिम यात्रा
उत्तराखंड का धार्मिक महत्व जितना महान है, उतनी ही कठिन है यहां की भौगोलिक संरचना। केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ ये चार धाम न केवल आस्था के केंद्र हैं बल्कि कठिन पर्वतीय भूगोल में बसे हैं, जहां मौसम हर पल करवट बदलता है।
हजारों की संख्या में श्रद्धालु हर साल यहां पहुंचते हैं और हेलीकॉप्टर सेवा एक जीवनरेखा की तरह मानी जाती है। मगर अब यह सेवा अपने साथ जोखिम भी लेकर आ रही है। एक वक्त था जब पैदल यात्रा जोखिम थी, आज स्थिति उलट चुकी है हेलीकॉप्टर सफर अब ज्यादा असुरक्षित बन चुका है।
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