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Up Kiran, Digital Desk: भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के दिनों में एक दिलचस्प मोड़ देखने को मिला है। जहां कुछ समय पहले वॉशिंगटन और नई दिल्ली की दोस्ती का प्रदर्शन पूरे उत्साह के साथ हुआ था, वहीं अब दोनों देशों के बीच तनाव और अविश्वास के संकेत दिख रहे हैं। जर्मन अख़बार Frankfurter Allgemeine Zeitung की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कई बार संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अपेक्षित जवाब नहीं मिला।
चार कॉल, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने व्यापार टैरिफ और आर्थिक समझौतों को लेकर मोदी से सीधे बातचीत करनी चाही थी। उन्होंने कुल चार बार कॉल किया, मगर प्रधानमंत्री ने फ़ोन नहीं उठाया। यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि महज कुछ महीने पहले, फरवरी 2025 में, ट्रंप ने मोदी का व्हाइट हाउस में बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया था और उन्हें "महान नेता" की संज्ञा दी थी।
नई रणनीति या दबाव की राजनीति
अख़बार का विश्लेषण यह संकेत देता है कि भारत अब अमेरिका की बजाय चीन के साथ नए आर्थिक रास्तों की तलाश कर रहा है। माना जा रहा है कि नई दिल्ली वॉशिंगटन के दबाव के आगे झुकने के बजाय उसी की भाषा में जवाब देना चाहती है। भारत का इरादा यह भी है कि खुद को अमेरिका के "चीन-विरोधी मोहरे" की भूमिका में सीमित न किया जाए, बल्कि अपने दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी जाए।
कृषि और दवा बाज़ार को लेकर टकराव
रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका लगातार भारत से यह अपेक्षा कर रहा था कि वह अपने बाज़ार को अमेरिकी कृषि उत्पादों और दवाओं के लिए खोले। भारत ने इसे घरेलू उद्योग और स्वाभिमान के खिलाफ मानते हुए सख्ती से नकार दिया। यही टकराव दोनों देशों के रिश्तों में ठंडक की वजह बना।
विशेषज्ञों की राय – भारत का पलटवार
तीन विश्लेषकों द्वारा लिखी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वर्षों से अमेरिका की एशिया-प्रशांत रणनीति काफी हद तक भारत पर टिकी रही है। वॉशिंगटन चाहता था कि भारत चीन के प्रभाव को संतुलित करे। लेकिन मौजूदा हालात में भारत दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है और इसके बजाय बीजिंग के साथ संभावित व्यापार समझौतों की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मार्ग भारत के लिए आसान नहीं होगा, फिर भी मोदी सरकार अपने रुख से पीछे हटने के मूड में नहीं है।
अमेरिका भारत के लिए कितना अहम बाजार है?
गौरतलब है कि अमेरिका, भारत के निर्यात का सबसे बड़ा गंतव्य है। कपड़े, आभूषण और ऑटो पार्ट्स जैसे उत्पाद वहां बड़ी मात्रा में भेजे जाते हैं। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि ट्रंप प्रशासन आयात शुल्क बढ़ाता है तो भारत को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
विपक्ष और सरकार के अलग सुर
जहां विपक्ष इसे अमेरिका के साथ संबंध बिगड़ने का परिणाम बता रहा है, वहीं मोदी सरकार इस पूरे मामले को "राष्ट्रीय हितों से समझौता न करने" की रणनीति के रूप में पेश कर रही है। सरकार का दावा है कि अगर कुछ आर्थिक चुनौतियाँ सामने भी आएं, तो भारत की आत्मनिर्भर नीति उन्हें संभालने में सक्षम है।
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