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dirty politics: सियासत में अजब-गजब घटनाएं अब कोई नई बात नहीं रह गई हैं। चंद्रशेखर का किंग मेकर बनना या झारखंड में निर्दलीय मधु कोड़ा का सीएम बनना जैसे उदाहरण ये दर्शाते हैं कि राजनीतिक परिदृश्य में असामान्य घटनाएं सामान्य हो गई हैं। बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी के नेता नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के रूप में अगले साल कार्यकाल पूरा करना इस बात का एक और प्रमाण है कि राजनीति के कायदे कानून अब बदल चुके हैं।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद भी नई सरकार का गठन नहीं हो पाया है, जिससे कार्यवाहक मुख्यमंत्री के भरोसे शासन चल रहा है। ये स्थिति ये बताती है कि राज्यपाल के हाथ में शासन जाने की संभावना पर भी चर्चा नहीं हो रही है, जो आमतौर पर ऐसी परिस्थितियों में होती है।

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार केवल सीएम के भरोसे चल रही है, जबकि मंत्रिमंडल के विस्तार की कोई तारीख तय नहीं हो पाई है। इंडिया ब्लॉक की पार्टियों के बीच मंत्रियों के चयन को लेकर चर्चा भी ठप है।

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने जेल में रहते हुए भी सरकार चलाई, जबकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नैतिकता के बजाय कानूनी अधिकारों का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में नैतिकता अब एक हाशिये पर चली गई है और नेताओं के लिए नियमों से अधिक महत्वपूर्ण उनके व्यक्तिगत हित बन गए हैं। इस तरह की घटनाएं राजनीतिक शास्त्र के छात्रों को भ्रमित कर सकती हैं, क्योंकि वे अब तक यही मानते आए हैं कि बहुमत की पार्टी का नेता ही प्रमुख होता है।

इसलिए, ये कहना गलत नहीं होगा कि आज की राजनीति में अजब-गजब घटनाओं की कोई कमी नहीं है, और कायदे कानून सिर्फ नाम के लिए  ही हैं। 
 

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