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Up Kiran, Digital Desk: इन दिनों दुनियाभर में एक ट्रेंड देखने को मिल रहा है—युवा आवाज़ें न केवल गूंज रही हैं, बल्कि बदलाव की बड़ी वजह भी बन रही हैं। भारत से सटे देशों से लेकर अफ्रीका तक, सरकारें अब युवा जनशक्ति की अनदेखी नहीं कर पा रहीं। ऐसा ही कुछ हाल ही में मेडागास्कर में देखने को मिला, जहां युवाओं के आंदोलन ने सरकार की नींव ही हिला दी।
बिजली और पानी ने छेड़ी चिंगारी
दक्षिण-पूर्व अफ्रीका के इस द्वीपीय देश में आम जनता खासकर युवा वर्ग लंबे समय से बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे थे। राजधानी अंतानानारिवो में पानी और बिजली की किल्लत ऐसी थी कि लोग रोजमर्रा की ज़िंदगी तक नहीं जी पा रहे थे। थक-हारकर युवाओं ने विरोध की राह पकड़ी और आंदोलन धीरे-धीरे उग्र रूप लेता गया।
29 सितंबर 2025 को यह आंदोलन इतना उग्र हो गया कि राष्ट्रपति एंड्री रजोएलिना ने टेलीविज़न पर आकर सरकार को भंग करने की घोषणा कर दी और देश से माफ़ी मांगी। यह कदम बताता है कि सरकार जनता के दबाव को झुठला नहीं पाई।
प्रदर्शन या जनविद्रोह?
इस विरोध की नींव महज़ बिजली-पानी की परेशानी नहीं थी। बेरोज़गारी, महंगाई और सरकारी उदासीनता ने भी इसमें ईंधन का काम किया। देश की लगभग 3 करोड़ की आबादी में से तीन-चौथाई लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे में जब नौजवानों ने सोशल मीडिया के ज़रिए अपने गुस्से को संगठित करना शुरू किया, तो वह आवाज़ आंदोलन में बदल गई।
केन्या, नेपाल और मोरक्को जैसे देशों के युवा आंदोलनों से प्रेरणा लेते हुए मेडागास्कर के युवाओं ने एक संगठित और प्रभावशाली मोर्चा खोला।
जब सड़कों पर मची अफरा-तफरी
प्रदर्शनकारियों ने शुरुआत यूनिवर्सिटी कैंपस से की, लेकिन जल्द ही मार्च राजधानी की सड़कों पर फैल गया। हालात तब बिगड़े जब पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया। इसके बाद प्रदर्शन हिंसा में बदल गया।
सुपरमार्केट, बैंक और नेताओं के घर निशाना बने। लूटपाट की घटनाएं बढ़ीं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं। सरकार ने इन आंकड़ों को अफवाह बताया है, लेकिन पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है और हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं।