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Up Kiran, Digital Desk: भारत की शिक्षा प्रणाली में एक अभूतपूर्व कदम उठाया गया है, जहाँ सरकार ने 'सेतुबंध विद्वान योजना' (Setubandha Vidwan Yojana) के तहत गुरुकुलों के छात्रों के लिए देश के प्रतिष्ठित संस्थानों, विशेषकर IITs (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) के द्वार खोल दिए हैं। इस योजना के तहत, पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को, जिनके पास कोई औपचारिक डिग्री भी न हो, ₹65,000 प्रति माह तक की छात्रवृत्ति और उदार अनुसंधान अनुदान (research grants) मिलेंगे।

शिक्षा के क्षितिज का विस्तार या 'प्राचीन ज्ञान' का 'वैज्ञानिक कठोरता' पर हावी होना?

यह योजना निश्चित रूप से उच्च शिक्षा के दायरे को व्यापक बनाने की दिशा में एक कदम है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह केवल परंपरा को एक विनम्र संकेत नहीं है, बल्कि यह 'प्राचीन ज्ञान' को आधुनिक वैज्ञानिक कठोरता (modern scientific rigour) के समानांतर, और कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत करने का एक पूर्ण प्रयास है।

IITs में गुरुकुल के छात्रों के लिए 'अनोखे' अवसर:

यदि आपने किसी गुरु के अधीन पांच साल तक गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की है, तो बधाई हो! अब आप न केवल दो दुनियाओं के बीच तालमेल बिठा सकते हैं, बल्कि IITs में आयुर्वेद, ज्योतिष (जिसे बेहतर ढंग से 'ज्योतिष' कहा जा सकता है), संस्कृत व्याकरण, प्रदर्शन कला, गणित और, व्यंग्यात्मक रूप से, 'संज्ञानात्मक विज्ञान' (cognitive science) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान (advanced research) भी कर सकते हैं।

यह योजना इस बात पर बहस छेड़ती है कि क्या पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों को आधुनिक वैज्ञानिक ढांचे के साथ कैसे एकीकृत किया जाए, और क्या ऐसे कदम देश की शैक्षिक और वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा देंगे या बाधित करेंगे।

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