Up Kiran, Digital Desk: जहां एक ओर नई और फैशनेबल तंबाकू उत्पादों, खासकर वेपिंग (e-cigarettes) को लेकर युवाओं में चिंताएं बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारत के युवाओं के लिए पारंपरिक तंबाकू उत्पाद जैसे सिगरेट, बीड़ी, और चबाने वाला तंबाकू (गुटखा, खैनी) एक खामोश संकट पैदा कर रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि ये उत्पाद फेफड़ों, मुंह और गले के कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा रहे हैं। उन्होंने इस तंबाकू के खिलाफ लड़ाई को और तेज करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला, ताकि इस अनदेखे खतरे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
चौंकाने वाले आंकड़े: 13-15 साल के बच्चे भी चपेट में
2019 के ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे (Global Youth Tobacco Survey) के अनुसार, भारत में 13-15 वर्ष की आयु के 8.5 प्रतिशत छात्र तंबाकू का सेवन करते हैं। यह आंकड़ा चिंताजनक है, क्योंकि यह हर साल 13 लाख मौतों में योगदान देता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जब 90 प्रतिशत से अधिक फेफड़ों के कैंसर के मामले ज्वलनशील तंबाकू (combustible tobacco) से जुड़े हैं, तो इस अनदेखे महामारी पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए, जो वेपिंग पर होने वाली बहस से कहीं अधिक गंभीर और व्यापक है।
'सेलेक्टिव पैनिक' नहीं, 'कैलिब्रेटेड अप्रोच' की जरूरत: IMA
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन, डॉ. नरेंद्र सैनी, ने IANS से बातचीत में कहा, "भारत में 90 प्रतिशत से अधिक फेफड़ों के कैंसर के मामले ज्वलनशील तंबाकू से जुड़े हैं। मेरे क्लिनिकल अनुभव में, मैं नियमित रूप से 17 साल तक के युवा मरीजों का इलाज तंबाकू से होने वाली जटिलताओं के लिए करता हूं। हमें निवारण, विनियमन और जन जागरूकता को जोड़ने वाले एक कैलिब्रेटेड (संतुलित) दृष्टिकोण की आवश्यकता है, न कि केवल चयनात्मक भय (selective panic) की।" उनका आशय यह है कि केवल नए उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना समस्या का समाधान नहीं है।
युवाओं की लत पर चर्चा का भटकाव: असली दुश्मन पर नजर डालें!
चिकित्सा समुदाय में यह चिंता बढ़ रही है कि युवाओं की तंबाकू की लत पर सार्वजनिक विमर्श सही मुद्दे से भटक रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जबकि वेपिंग जैसे नए रुझानों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में गुटखा और खैनी जैसे पारंपरिक तंबाकू उत्पादों से जुड़े मौखिक और गले के कैंसर की खामोश महामारी एक अधिक जरूरी और खतरनाक रूप से अनदेखी की जाने वाली समस्या है। यह समस्या धीरे-धीरे हमारे युवाओं को खोखला कर रही है।
प्राथमिकताएं फिर से तय करने की आवश्यकता: एम्स के पूर्व प्रोफेसर
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित, पूर्व प्रोफेसर और एचओडी, कम्युनिटी मेडिसिन, एम्स, नई दिल्ली के डॉ. चंद्रकांत एस पांडव ने इस मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए कहा, "डेटा एक कड़वी सच्चाई की ओर इशारा करता है - हमारे युवाओं पर पारंपरिक तंबाकू की पकड़ अन्य चिंताओं से कहीं अधिक है, जो हमें अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर करती है। हमारा ध्यान ट्रेंडी विकल्पों से हटकर उन सिद्ध हत्यारों: सिगरेट, बीड़ी और चबाने वाले तंबाकू पर केंद्रित होना चाहिए।"
स्कूलों और गांवों में 'अप्रचलित' नहीं, 'खतरनाक' राज!
वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने यह भी नोट किया कि स्कूलों और गांवों में पारंपरिक तंबाकू का बोलबाला बरकरार है और यह काफी हद तक अप्र挑戰ित है। वेपिंग को लेकर बढ़ती चिंताओं के बावजूद, ज्वलनशील और बिना धुएं वाले तंबाकू का उपयोग आज भी युवाओं के बीच व्यापक है। ये उत्पाद आसानी से उपलब्ध हैं और अक्सर युवाओं के लिए सस्ते भी होते हैं, जिससे उनकी लत का चक्र जारी रहता है। यह खतरनाक प्रवृत्ति भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर और तत्काल खतरा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
समाधान का मार्ग: एक एकीकृत और व्यापक प्रयास
विशेषज्ञों का मानना है कि इस दोहरे मोर्चे वाले संकट से निपटने के लिए एक एकीकृत रणनीति की आवश्यकता है। इसमें केवल एक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना शामिल है:
निवारण (Prevention): युवाओं को तंबाकू के गंभीर दुष्प्रभावों और कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में जागरूक करना। उन्हें तंबाकू मुक्त जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और स्कूलों तथा समुदायों में जागरूकता अभियान चलाना।
विनियमन (Regulation): पारंपरिक तंबाकू उत्पादों की बिक्री, विपणन, और पहुंच को कड़ाई से नियंत्रित करना। उत्पाद मानकों को मजबूत करना और अवैध बिक्री पर नकेल कसना।
जन जागरूकता (Public Awareness): तंबाकू के कारण होने वाली बीमारियों, विशेष रूप से कैंसर, और युवाओं पर इसके विनाशकारी प्रभाव के बारे में बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान चलाना।
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