Up Kiran, Digital Desk: थलाइवा को 73वें जन्मदिन की बधाई एक बस कंडक्टर कैसे बना सिनेमा का भगवान?
आज भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में से एक, रजनीकांत, अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं.थलाइवा (Thalaivar) यानी 'लीडर' के नाम से मशहूर रजनीकांत का सफ़र सिर्फ़ एक फ़िल्मी कहानी नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए एक जीती-जागती प्रेरणा है. यह कहानी है उस शिवाजी राव गायकवाड़ की, जिसने अपनी मेहनत और अनोखे अंदाज़ से वो मुक़ाम हासिल किया, जिसका सपना देखना भी कई लोगों के लिए मुश्किल है.
संघर्ष भरे दिन कुली, बढ़ई और बस कंडक्टर का काम
रजनीकांत का जन्म 12 दिसंबर 1950 को बैंगलोर के एक बेहद साधारण मराठी परिवार में हुआ था. परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी और बहुत छोटी उम्र में ही उनकी माँ का देहांत हो गया, जिसके बाद मुश्किलें और बढ़ गईं. घर चलाने में मदद करने के लिए रजनीकांत ने कुली से लेकर बढ़ई तक का काम किया. बाद में उन्हें बैंगलोर ट्रांसपोर्ट सर्विस में बस कंडक्टर की नौकरी मिली.
लेकिन कंडक्टर के तौर पर भी उनका अंदाज़ सबसे निराला था. टिकट काटने का उनका स्टाइल, सीटी बजाने का तरीका यात्रियों के बीच काफ़ी मशहूर था हालांकि वो बस में टिकट काट रहे थे, लेकिन उनके दिल में हमेशा से एक एक्टर बनने का सपना पलता रहा
जब एक नाटक ने बदल दी किस्मत
अभिनय के अपने जुनून को ज़िंदा रखने के लिए रजनीकांत खाली समय में कन्नड़ नाटकों में हिस्सा लिया करते थे. एक दोस्त की मदद और प्रोत्साहन से उन्होंने चेन्नई के 'मद्रास फिल्म इंस्टिट्यूट' में दाखिला ले लिया. यहीं एक नाटक के मंचन के दौरान मशहूर निर्देशक के. बालाचंदर की नज़र उन पर पड़ी वो रजनीकांत के अभिनय से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत अपनी तमिल फ़िल्म 'अपूर्व रागंगल' (1975) में उन्हें एक छोटा सा रोल दे दिया. यहीं से शिवाजी राव गायकवाड़ का फ़िल्मी सफ़र 'रजनीकांत' के नाम से शुरू हुआ.
विलेन से हीरो बनने का सफ़र और स्टाइल का जादू
शुरुआती दिनों में रजनीकांत को ज़्यादातर नेगेटिव या सहायक किरदार ही मिले. लेकिन पर्दे पर उनके आने का अंदाज़, सिगरेट को हवा में उछालकर पकड़ना और डायलॉग बोलने का उनका ख़ास तरीका लोगों को दीवाना बना गया. उनका स्टाइल एक ट्रेंड बन गया, जिसे हर कोई कॉपी करना चाहता था. धीरे-धीरे वो विलेन से हीरो बने और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
आज 73 साल की उम्र में भी उनकी एनर्जी और पर्दे पर उनका जादू वैसा ही कायम है. वो सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक उम्मीद की किरण हैं, जो यह साबित करती है कि अगर आपमें टैलेंट और मेहनत करने का जज़्बा है, तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता. यही वजह है कि दक्षिण भारत में उनके प्रशंसक उन्हें सिर्फ़ एक स्टार नहीं, बल्कि भगवान का दर्जा देते हैं.
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