
ढाका: बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में पहुंच गई है। देश की सत्तारूढ़ पार्टी, अवामी लीग, जिसके नेतृत्व में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना शासन कर रही हैं, उस पर संभावित प्रतिबंध की चर्चा ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। हालिया घटनाक्रम और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या बांग्लादेश एक गहरे राजनीतिक संकट की ओर बढ़ रहा है?
दरअसल, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों द्वारा लगातार यह आरोप लगाया गया है कि हसीना सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं का दमन कर रही है, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी हो रही है और चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों ने भी हाल ही में बांग्लादेश में "लोकतंत्र के कमजोर होने" पर चिंता जाहिर की है।
इसी पृष्ठभूमि में, अगर किसी अंतरराष्ट्रीय या संवैधानिक दबाव के चलते अवामी लीग पर प्रतिबंध लगता है, तो यह न केवल शासन व्यवस्था को संकट में डालेगा, बल्कि देश में अस्थिरता और हिंसा की आशंका को भी जन्म देगा। अवामी लीग पिछले कई दशकों से बांग्लादेश की राजनीति की केंद्रीय शक्ति रही है और उसका बैन होना एक असामान्य व असंतुलित राजनीतिक परिदृश्य तैयार कर सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे किसी भी कदम से देश में लोकतंत्र और शांति की स्थिति और कमजोर हो सकती है। विपक्षी BNP पार्टी को भले ही इससे मौका मिले, लेकिन अगर यह प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत नहीं रही, तो इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बांग्लादेश की छवि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
फिलहाल, बांग्लादेश सरकार और चुनाव आयोग की तरफ से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन देश की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें आने वाले हफ्तों की राजनीतिक दिशा पर टिकी हैं। यदि स्थिति को संवैधानिक रूप से ना सुलझाया गया, तो यह संकट और गहरा सकता है।
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