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(पवन सिंह)
साबरमती देख ली है..? तो एक बार इसी घटना पर BBC की डाक्यूमेंट्री फिल्म भी देख लें..और हां!  हमारे देश में पुलिस द्वारा 100ग्राम गांजा या एक देशी कट्टा दिखा कर किसी को भी अंदर करने की पुरानी परंपरा रही है और अब संसद भवन में एक नामी व सम्पन्न वकील की मेज में 50 हजार रखवा कर चवन्नी चोरी पर बहस मोड़ दी गई...ताकि एकमेव राष्ट्रीय सेठ अडानी और संभल पल चर्चा न होने पाये....कुछ दिन और रूकिए ...कमला पसंद की पुड़िया, बड़ी गोल्ड, गोल्ड फ़्लैग लाइट, खरगोश छाप खैनी...भी बरामद करवाई जाएगी और उस पर सदन में चर्चा होगी.....हां! अब कभी भी आपके जीवन के सरोकारों के जुड़े विषयों पर चर्चा नहीं होगी...!!! न ही रोजगार पर...न ही रोटी पर...न मंहगाई पर....न भुखमरी पर...न ही बंद होते सरकारी स्कूलों पर...न ही कापी, पेंसिल पर लगे जीएसटी पर....न ही युवाओं द्वारा की जाती हुई हत्याओं पर.....2014 के बाद से जनता के सरोकारों से न तो सत्ता का कोई लेना-देना रह गया न ही मीडिया का....!!! ...

भारतीय मेन स्ट्रीम मीडिया को घोर साम्प्रदायिक बना दिया गया है और मुझे यह लिखने व कहने में कोई भी गुरेज नहीं है कि भारतीय मीडिया पहले से ही घोर और कट्टर जातिवादी रहा है। मैं जब एक बड़े हिंदी दैनिक में बतौर संवाददाता हुआ करता था उस वक्त उत्तर प्रदेश के गवर्नर सूरजभान जी हुआ करते थे...उनके सचिव एक वरिष्ठ आईएएस थे... बतौर शिक्षा व चिकित्सा संवाददाता मेरा आना-जाना राजभवन होता रहता था...क्योंकि विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति गवर्नर ही होता है...उन्होंने मेन स्ट्रीम मीडिया में जातिगत समीकरण का सर्वे कराया था...!! इसकी जो रिपोर्ट आई वह सार्वजनिक तो नहीं हुई लेकिन 96 प्रतिशत मीडियाकर्मी सशक्त वर्ग के थे...!!! दरअसल मेन स्ट्रीम घोर जातिवादी मीडिया शुरू से ही साम्प्रदायिक रहा लेकिन कभी खुलकर नंगा नहीं हुआ..!!! वह नंगा होना शुरू हुआ था मंडल कमीशन के बाद लेकिन फिर भी पायजामा पहने हुए था लेकिन अब तो भारतीय मीडिया अपने चाल-चरित्र और चिंतन का पायजामा और अंडर वियर तक उतार कर पूरा नंगा है। मालिकान माल चीर रहे हैं और पत्रकार दलाली खा रहे हैं...!!!

देश में स्थितियां बद से बद्तर की जा रही हैं।‌ जब बात होनी चाहिए थी बेहतरीन एजूकेशन सिस्टम को डेवलप करने की, साइंटिफिक टैंपरामेंट डेवलपमेंट की, बेहतरीन रिसर्च इंस्टीटीट्यूशन्स की... बेहतरीन अर्थव्यवस्था की तो सरकार और मीडिया बात कर रहा है मस्जिदों के नीचे की जमीन में दबे तथाकथित भगवानों की, मीडिया प्रफुल्लित हो रहा है दंगे देख कर, वह बहस करा रहा है हिन्दू और मुसलमानों पर...!! मीडिया और संसद में एक बार भी खाद्यान्नों की मंहगाई पर चर्चा नहीं हुई...?? व्यापारियों और उद्योगपतियों को भंडारण की असीमित छूट दे दी गई और इन मुनाफाखोरों ने दाल, चावल, गेहूं, तिलहन...सब अपने-अपने विशालकाय साइलो में भर लिया...कहीं कोई चर्चा नहीं...?? मतदान के बाद रातों-रात वोट प्रतिशत बढ़ने लगा कहीं कोई चर्चा नहीं...?? हमारे उद्योगपतियों की भी दूरदर्शिता देखिए जब एलन मस्क जैसे उद्योगपति साइंस और टेक्नोलॉजी में पैसा लगा रहे हैं तो हमारे यहां के साबुन, हल्दी, धनिया, मिर्चा, गेंहू और सरसों खरीदकर मुनाफाखोरी की सड़कछाप कमाई में लगे हैं..??

वर्ष, 2014 से लेकर आज तक रुपये की औसत मुद्रास्फीति दर 5.42% प्रति वर्ष रही है, जिससे कुल मूल्य वृद्धि 69.60% रही है। इसका मतलब है कि आज की कीमतें 2014 के बाद से औसत कीमतों से 1.70 गुना अधिक हैं, जैसा कि OECD और भारत के लिए विश्व बैंक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से पता चलता है। अक्टूबर 2024 में खाद्य महंगाई दर डबल डिजिट में चला गया है और ये 10.87 फीसदी रही है जो सितंबर में 9.24 फीसदी रही थी. ग्रामीण इलाकों में खाद्य महंगाई दर 10.69 फीसदी तो शहरी इलाकों में 11.09 फीसदी रही है। मानव विकास संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन  द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार , भारत की कार्यशील आबादी 2011 में 61 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 64 प्रतिशत हो गई और 2036 में इसके 65 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि, 2022 में आर्थिक गतिविधियों में शामिल युवाओं का प्रतिशत घटकर 37 प्रतिशत रह गया। स्वतंत्र थिंक टैंक, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार , भारत में बेरोजगारी दर सितंबर 2024 में 7.8 प्रतिशत रही, जो अगस्त 2024 में 8.5 प्रतिशत थी। श्रम भागीदारी दर 41.6 प्रतिशत से गिरकर 41 प्रतिशत हो गई और रोजगार दर अगस्त में 38 प्रतिशत से गिरकर सितंबर में 37.8 प्रतिशत हो गई।

युवा बेरोजगारी से तंग आकर तेजी से आत्महत्या कर रहे हैं....राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि बेरोज़गारी की वजह से वर्ष  2018 से 2020 तक 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। वर्ष, 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या की है। वर्ष ,2014 की तुलना में 2020 में बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है....विगत चार सालों में इसमें जबरदस्त वृद्धि हुई है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ कंप्यूटेशनल एंड इंटीग्रेटिव साइंस के प्रोफ़ेसर शानदार अहमद के मुताबिक छह साल में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि ख़तरनाक है। प्रोफ़ेसर शानदार अहमद बताते हैं, "साल 2014 से 2017 तक कोई ख़ास बदलाव नज़र नहीं आता लेकिन 2020 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के मामलों में अचानक से बड़ा उछाल दिखा है. ये काफ़ी बड़ा बदलाव है, इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता."

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सत्ता को जनता से अब बहुत कुछ लेना-देना रहा नहीं..!! चुनावों का कोई मतलब रहा नहीं..!! वोट देने जाएं या न जाएं सरकार को चिंता नहीं..!! मीडिया को माल कमाना आ गया है...सत्ता को सत्ता में बने रहने का हुनर आ गया है और जनता मस्जिदों और मुसलमानों में कुदा दी गई है....खुदा और भगवान का मसला भूख से बड़ा हो चुका है..!!!!
 

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