
Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पंचायती राज संस्थाओं (PRI) के चुनावों में देरी करने पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने सरकार के चुनाव टालने के बहाने, जैसे परिसीमन (delimitation), को सिरे से खारिज करते हुए तत्काल चुनाव कराने का आदेश दिया है। जस्टिस अनूप कुमार धनद ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि निर्धारित समय सीमा के भीतर चुनाव न कराना संविधान का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्थानीय निकाय चुनावों को पिछली अवधि के पांच साल के भीतर कराना अनिवार्य है, और किसी भी स्थगन की अवधि छह महीने से अधिक नहीं हो सकती।
चुनाव टालने पर SC को हस्तक्षेप की जिम्मेदारी
जस्टिस धनद ने कहा कि यदि सरकार समय पर चुनाव कराने में विफल रहती है, तो राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission) का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह हस्तक्षेप करे और लोकतांत्रिक स्थानीय शासन को बहाल करे। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में एक "शासन शून्यता" (governance vacuum) पैदा हो जाती है, जिसका सीधा असर सार्वजनिक सेवा वितरण (public service delivery) पर पड़ता है।
निष्कासित प्रशासकों की बहाली का आदेश
अदालत ने निलंबित पंचायत प्रशासकों के मुद्दे पर भी महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि निर्वाचित सरपंचों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, राज्य सरकार ने 16 जनवरी को एक अधिसूचना जारी कर चुनाव में देरी के कारण उन्हें प्रशासक नियुक्त किया था। हालांकि, बाद में बिना उचित जांच या सुनवाई के उन्हें हटा दिया गया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार के ये कृत्य संविधान, पंचायती राज अधिनियम और नगरपालिका अधिनियम का उल्लंघन करते हैं।
कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की चेतावनी
कोर्ट ने प्रशासकों को हटाने की प्रक्रिया को 'प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण' (procedurally flawed) पाया और उन्हें बहाल करने का आदेश दिया। अदालत ने सरकार को यह भी चेतावनी दी कि यदि आवश्यक हो, तो वह उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही कोई कार्रवाई कर सकती है।
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