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Up Kiran, Digital Desk: हम इंसान जो कुछ भी करते हैं, उसका असर सिर्फ जमीन पर ही नहीं, बल्कि आसमान पर भी पड़ता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास की एक नई रिसर्च ने इस बात को और गहराई से समझाया है कि हमारी रोजमर्रा की गतिविधियाँ कैसे हवा में मौजूद छोटे-छोटे कणों (जिन्हें 'एरोसोल' कहते हैं) और मौसम को प्रभावित करती हैं।

ये एरोसोल हवा में तैरने वाले बहुत ही छोटे कण होते हैं, जो बादल बनाने और बारिश के लिए बेहद ज़रूरी हैं। मौसम में बदलाव का अनुमान लगाने में ये एरोसोल सबसे बड़ी पहेली बने हुए हैं, क्योंकि इनके बारे में अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है।

लॉकडाउन के बाद क्या बदला?

IIT मद्रास की टीम ने जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर भारत के तटीय इलाकों में बादल बनने की प्रक्रिया पर स्टडी की। उन्होंने एक हैरान करने वाली चीज़ देखी। कोविड-19 लॉकडाउन के बाद, जैसे ही इंसानी गतिविधियाँ और प्रदूषण धीरे-धीरे वापस बढ़ने लगा, तो बादल बनाने वाले इन कणों (CCN) की संख्या में 80 से 250 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी हो गई।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लॉकडाउन के बाद हवा में नए कण बनने की प्रक्रिया (New Particle Formation) तेज़ हो गई। ये नए कण सीधे तौर पर हमारी गतिविधियों से निकलने वाले धुएं और गैसों से बन रहे थे।

पुरानी धारणा गलत साबित हुई

इस स्टडी से एक और दिलचस्प बात सामने आई। अब तक यह माना जाता था कि इंसानों द्वारा पैदा किए गए ऑर्गेनिक कण बादल बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। लेकिन इस रिसर्च ने इस धारणा को चुनौती दी है। स्टडी में पाया गया कि इन नए कणों को बड़ा करने में सबसे बड़ा हाथ इंसानों द्वारा पैदा किए गए ऑर्गेनिक पदार्थों का ही था।

IIT मद्रास के प्रोफेसर सचिन एस. गुंठे, जो इस रिसर्च के मुख्य वैज्ञानिक हैं, ने कहा, “हमारी रिसर्च बताती है कि इंसानी गतिविधियाँ एरोसोल के व्यवहार को बहुत ज़्यादा प्रभावित करती हैं, खासकर कि वे बादल कैसे बनाते हैं। ये नतीजे मौजूदा मॉडलों को चुनौती देते हैं और यह समझने के लिए नए रास्ते खोलते हैं कि इंसान कैसे मौसम के पैटर्न को बदल रहा है।”

यह स्टडी वैज्ञानिकों को मौसम का अनुमान लगाने वाले अपने कंप्यूटर मॉडलों को और बेहतर बनाने में मदद करेगी, जिससे भविष्य में मौसम के बदलावों का ज़्यादा सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।