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नई दिल्ली। जब भी दो परमाणु संपन्न देशों — भारत और पाकिस्तान — के बीच तनाव बढ़ता है, तो आम लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या परमाणु हथियार एक बटन दबाते ही चलाए जा सकते हैं? या फिर इसके लिए कोई लंबी प्रक्रिया होती है? आइए समझते हैं कि दोनों देशों में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की रणनीति और निर्णय प्रक्रिया कैसी है।

सबसे पहले बात करते हैं भारत की। भारत "No First Use" (NFU) यानी ‘पहले इस्तेमाल नहीं’ की नीति पर चलता है। इसका मतलब है कि भारत तब तक परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं करेगा जब तक उस पर परमाणु हमला न हो जाए। भारत में परमाणु हमले का अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले ‘न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी’ (NCA) के पास होता है। यह एक बहुस्तरीय प्रणाली है, जिसमें वैज्ञानिक सलाहकार, सशस्त्र बल प्रमुख और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुख शामिल होते हैं। किसी भी परमाणु कार्रवाई के लिए इन सभी की मंजूरी आवश्यक होती है।

वहीं पाकिस्तान की नीति थोड़ी अलग है। पाकिस्तान ने स्पष्ट रूप से ‘No First Use’ की नीति नहीं अपनाई है। उसका कहना है कि यदि उसकी सुरक्षा या अस्तित्व को खतरा हुआ, तो वह पहले भी परमाणु हमला कर सकता है। पाकिस्तान में भी न्यूक्लियर फैसलों की कमान एक विशेष संस्था — नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) — के पास होती है, जिसकी अगुवाई प्रधानमंत्री करते हैं। यहां भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में सैन्य और असैन्य अधिकारी शामिल होते हैं, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान की प्रक्रिया अपेक्षाकृत कम समय में प्रतिक्रिया देने वाली मानी जाती है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि परमाणु हमला कोई तात्कालिक या आवेश में लिया गया निर्णय नहीं होता। इसके पीछे एक विस्तृत और बेहद सतर्क निर्णय प्रक्रिया होती है, ताकि ऐसे हथियारों का उपयोग केवल आखिरी विकल्प के तौर पर ही किया जाए।
 

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