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Up Kiran, Digital Desk: डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम जिन्हें हत्या और बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराया गया है को हाल ही में 40 दिनों की पैरोल मिली है। इससे पहले अप्रैल 2025 में उन्हें 21 दिनों की रिहाई मिली थी। 2020 के बाद से यह उनका चौदहवां मौका है जब वे जेल से बाहर आए हैं। अब तक उन्होंने कुल मिलाकर 326 दिन जेल के बाहर बिताए हैं। ऐसे लगातार पैरोल मिलने पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह प्रक्रिया पूरी तरह न्यायसंगत है या इसमें कोई अन्य प्रभावी कारण हो सकते हैं। खासतौर पर ध्यान देने वाली बात यह है कि राम रहीम को चुनावों के समय जेल से बाहर आने की इजाजत मिलती रही है जो सामाजिक स्तर पर भी बहस का विषय बना हुआ है।

पैरोल के विभिन्न प्रकार और नियम

भारत में पैरोल के लिए कोई एक निश्चित मानक निर्धारित नहीं है। किसी भी कैदी जिसका मामला कोर्ट में चल रहा हो पैरोल के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन अंतिम फैसला अदालत या जेल प्रशासन के हाथ में होता है। पैरोल मुख्य रूप से दो तरह की होती है कस्टडी पैरोल और नियमित पैरोल। कस्टडी पैरोल विशेष परिस्थितियों में दी जाती है और इसकी अधिकतम अवधि छह घंटे होती है। इसके विपरीत नियमित पैरोल अधिक समय के लिए होती है जिसमें कैदी को लगभग 30 दिनों के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति मिलती है।

पैरोल की अवधि और सीमाएं

एक सामान्य पैरोल 30 दिनों की होती है जिसे जरूरत पड़ने पर अधिकतम 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है परंतु यह अतिरिक्त समय विशेष कारणों से ही दिया जाता है। पैरोल मिलने के बाद कैदी को छह महीने का इंतजार करना पड़ता है तभी वह फिर से पैरोल के लिए आवेदन कर सकता है। वहीं फरलो (छुट्टी) की स्थिति में कैदी एक महीने बाद पुनः फरलो मांग सकता है।

पैरोल की बारंबारता और आपातकालीन स्थिति

आम तौर पर पैरोल छह महीने के अंतराल पर ही दी जाती है लेकिन कुछ आपातकालीन परिस्थितियों में जैसे परिवार में मृत्यु बच्चे के जन्म परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी विवाह या प्राकृतिक आपदा जैसे कारणों से यह अवधि कम भी हो सकती है। दिल्ली जेल नियम 2018 के अनुसार एक कैदी को सालाना लगभग 3 से 4 महीने की छूट दी जा सकती है यह छूट उनके जेल में व्यवहार और काम पर आधारित होती है।

कैदियों की रिहाई के नियम और प्रक्रिया

किसी भी कैदी के जेल से बाहर आने के दो मुख्य तरीके होते हैं: पैरोल और रिहाई। पैरोल अस्थायी होती है जहां कैदी कुछ समय के लिए बाहर आता है जबकि पूरी तरह की रिहाई तब होती है जब कैदी अपनी सजा पूरी कर चुका होता है। पैरोल के लिए कैदी को आवेदन देना होता है जिसे कोर्ट या जेल प्रशासन मंजूर करता है। इसके विपरीत रिहाई तभी मिलती है जब सजा का पूरा समय समाप्त हो जाता है।

 

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