
Chhattisgarh High Court ने बड़ा फैसला सुनाया है। किसी भी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की मांग को असंवैधानिक बताया गया है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है।
एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के किसी अन्य के साथ संबंध साबित करने के लिए वर्जिनिटी टेस्ट की मांग करने वाली याचिका का जवाब मिल गया है। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा के अनुसार, वर्जिनिटी टेस्ट की अनुमति देना मौलिक अधिकार, प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों और महिला की निजी विनम्रता के खिलाफ है।
व्यक्ति ने पारिवारिक न्यायालय के 15 अक्टूबर 2024 के आदेश को चुनौती दी थी और अंतरिम आवेदन खारिज कर दिया गया है। इस जोड़े की शादी 2023 में हुई थी। पत्नी ने अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि उसका पति नपुंसक है और उसने वैवाहिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया। उसने 5 लाख रुपए गुजारा भत्ता मांगा। उसने अपने पति से 20,000 रुपये उधार लिये थे।
याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी के लिए वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की और आरोप लगाया कि उसकी पत्नी का उसकी बहन के पति के साथ संबंध है।
कोर्ट ने व्यक्ति से कहा कि वह यह साबित करने के लिए मेडिकल परीक्षण करा सकता है कि नपुंसकता के आरोप निराधार हैं। उसे अपनी पत्नी के कौमार्य का परीक्षण करके अपने साक्ष्य में कमी को पूरा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जज ने कहा है कि याचिकाकर्ता की मांग असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है, जिसमें महिलाओं के सम्मान का अधिकार शामिल है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 न केवल जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, बल्कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी देता है, जो महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है। किसी भी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
--Advertisement--