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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं (IIT Guwahati researchers) की एक टीम ने ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University), अमेरिका, के शोधकर्ताओं के सहयोग से एक अंडरवॉटर वाइब्रेशन सेंसर (Underwater Vibration Sensor) विकसित किया है, जो स्वचालित (automated) और संपर्क रहित (contactless) आवाज पहचान (voice recognition) को सक्षम बनाता है. यह अभिनव सेंसर 'वॉयस डिसएबिलिटी' (voice disabilities) से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक आशाजनक वैकल्पिक संचार विधि (alternative communication method) प्रदान करता है, जो पारंपरिक आवाज-आधारित प्रणालियों (conventional voice-based systems) का उपयोग करने में असमर्थ हैं. यह तकनीक विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए संचार (communication for disabled persons) के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है, जो AI आधारित वॉयस रिकॉग्निशन (AI based voice recognition) की क्षमता को बढ़ाएगी और 'अवाक लोगों के जीवन' (life of speech-impaired people) में एक 'क्रांति' (revolution) ला सकती है.

मुंह से निकली सांस और पानी की लहरें: ऐसे 'खामोश आवाज' को भी समझ पाएगा ये सेंसर!

इस क्रांतिकारी शोध ने बात करते समय मुंह से बाहर निकलने वाली हवा - एक बुनियादी शारीरिक क्रिया पर ध्यान केंद्रित किया है. जिन मामलों में व्यक्ति ध्वनि उत्पन्न नहीं कर सकते, वहां बोलने का प्रयास करने से उनके फेफड़ों से हवा का प्रवाह (airflow from lungs) होता है. जब यह हवा पानी की सतह (water surface) पर बहती है, तो यह सूक्ष्म लहरें (subtle waves) उत्पन्न करती है. आईआईटी गुवाहाटी (IIT Guwahati) के शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित शोधपत्र, एडवांस्ड फंक्शनल मटेरियल्स (Advanced Functional Materials) नामक प्रतिष्ठित जर्नल में इस नई प्रणाली का विवरण दिया गया है. टीम ने बताया कि यह अंडरवॉटर वाइब्रेशन सेंसर (Underwater Vibration Sensor) इन पानी की लहरों का पता लगा सकता है और श्रव्य आवाज (audible voice) पर निर्भर हुए बिना भाषण संकेतों (speech signals) की व्याख्या कर सकता है, इस प्रकार आवाज पहचान (voice recognition) के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त कर सकता है. यह 'भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धि' (Indian scientific achievement) का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो सहायक प्रौद्योगिकी (Assistive Technology) के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है.

आईआईटी गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर उत्तम मन्ना (Prof. Uttam Manna, Department of Chemistry, IIT Guwahati) ने इस तकनीक के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "यह उन दुर्लभ भौतिक डिजाइनों में से एक है जो मुंह से निकलने वाली हवा के कारण वायु/जल इंटरफेस पर बनने वाली पानी की लहरों की निगरानी के आधार पर आवाज की पहचान की अनुमति देता है. यह दृष्टिकोण आंशिक रूप से या पूरी तरह से क्षतिग्रस्त स्वर रज्जू (damaged vocal cords) वाले व्यक्तियों के साथ संचार के लिए एक व्यवहार्य समाधान प्रदान करने की संभावना रखता है."

कैसे काम करता है ये जादूई सेंसर? कंडक्टिव स्पंज और AI की ताकत!

यह नया सेंसर एक प्रवाहकीय, रासायनिक रूप से प्रतिक्रियाशील झरझरा स्पंज (conductive, chemically reactive porous sponge) से बना है. जब इसे वायु-जल इंटरफेस के ठीक नीचे रखा जाता है, तो यह निकलने वाली हवा द्वारा बनाई गई छोटी-छोटी गड़बड़ी को पकड़ता है और उन्हें मापने योग्य विद्युत संकेतों (measurable electrical signals) में परिवर्तित करता है. शोध टीम ने इन सूक्ष्म सिग्नल पैटर्न को सटीक रूप से पहचानने के लिए कन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क्स (Convolutional Neural Networks - CNN) - एक प्रकार के डीप लर्निंग मॉडल (deep learning model) - का उपयोग किया है. यह सेटअप उपयोगकर्ताओं को ध्वनि उत्पन्न करने की आवश्यकता के बिना, दूरी से उपकरणों के साथ संवाद करने की अनुमति देता है. यह तकनीक 'गैर-आक्रामक संचार' (non-invasive communication) के नए दरवाजे खोलती है, जो AI की शक्ति (power of AI) का एक और प्रमाण है.

टीम ने बताया कि प्रयोगशाला पैमाने पर, कार्यशील प्रोटोटाइप (working prototype) की लागत 3,000 रुपये है, जो अपेक्षाकृत कम है. वे इस तकनीक को प्रयोगशाला से वास्तविक दुनिया के उपयोग में लाने के लिए संभावित उद्योग सहयोग (industry collaboration) की तलाश कर रहे हैं, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन होने पर इसकी लागत और कम हो सकती है. इससे यह तकनीक 'आम लोगों के लिए सुलभ' (accessible to common people) हो सकेगी.

इस क्रांतिकारी सेंसर की खासियतें:

यह अनुसंधान 'विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी' (digital technology for children with special needs) और 'सहायक उपकरणों' (assistive devices) के क्षेत्र में भी नए रास्ते खोलेगा, जिससे समावेशी तकनीक (inclusive technology) को बढ़ावा मिलेगा और 'सामाजिक सशक्तिकरण' (social empowerment) में योगदान होगा.

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