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इस्लामाबाद/वॉशिंगटन: आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से राहत तो मिली, लेकिन इसके साथ ही अब उसे कड़े आर्थिक सुधारों और नीतिगत बदलावों की लंबी फेहरिस्त का सामना करना होगा। IMF ने हाल ही में पाकिस्तान को कर्ज़ की एक और किस्त जारी की है, लेकिन इसके साथ ही 11 सख्त शर्तें भी रख दी हैं, जिससे इस सहायता की असल कीमत अब सामने आ रही है।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बीते कुछ वर्षों से भारी दबाव में है। महंगाई, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, और बढ़ते विदेशी कर्ज ने हालात को और बदतर बना दिया है। ऐसे में IMF से मिली आर्थिक मदद पाकिस्तान के लिए एक अस्थायी राहत साबित हो सकती है, लेकिन इसके बदले में IMF ने जिस तरह की नीतिगत शर्तें रखी हैं, वह देश की आम जनता पर अतिरिक्त बोझ डाल सकती हैं।

इन शर्तों में बिजली और गैस सब्सिडी में कटौती, टैक्स बढ़ाना, सरकारी खर्चों में कटौती, रुपये की कीमत को बाजार के अनुसार छोड़ना और पारदर्शी नीतियों को अपनाना शामिल है। IMF ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तान इन सुधारों को लागू नहीं करता, तो आगे की वित्तीय सहायता रोकी जा सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन शर्तों को लागू करना पाकिस्तान सरकार के लिए आसान नहीं होगा। पहले से ही वहां की जनता महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान है। ऐसे में सब्सिडी हटाना या टैक्स बढ़ाना सामाजिक और राजनीतिक असंतोष को जन्म दे सकता है।

IMF की चेतावनी ने यह भी साफ कर दिया है कि यह कर्ज़ बिना शर्तों के नहीं है। यदि पाकिस्तान ने आर्थिक सुधारों में देरी की, तो उसे न केवल अगली किश्त गंवानी पड़ सकती है, बल्कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों से भविष्य में मदद मिलना भी कठिन हो सकता है।

 

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