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बाराबंकी (उत्तर प्रदेश): उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जहां एक किसान ने अपनी फसल को बचाने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी। यह घटना न सिर्फ किसान की व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि देशभर के किसानों की असुरक्षा और संघर्ष की एक झलक भी पेश करती है।
मृतक किसान की पहचान 45 वर्षीय रमेश यादव के रूप में हुई है, जो अपने खेत में लगी गेहूं की फसल की रखवाली कर रहे थे। सोमवार की रात खेत के पास अचानक आग लग गई, जिसकी चपेट में रमेश खुद भी आ गए। आग की लपटों में घिरकर उनकी मौत हो गई और पूरी फसल जलकर खाक हो गई।
गांववालों के अनुसार, आग लगने की वजह संभवतः शॉर्ट सर्किट या किसी असावधानी से खेत के पास फैला हुआ सूखा घास-पुआल था। रमेश जैसे ही आग बुझाने खेत की ओर दौड़े, वह लपटों में घिर गए। मौके पर पहुंची पुलिस और दमकल विभाग ने आग पर काबू पाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
रमेश यादव की मौत से उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। वे अपने पीछे पत्नी, दो बच्चे और बूढ़ी मां को छोड़ गए हैं। यह परिवार पूरी तरह खेती पर निर्भर था और फसल ही उनका एकमात्र सहारा थी।
स्थानीय प्रशासन ने घटना पर दुख व्यक्त करते हुए मुआवजे की घोषणा की है। जिलाधिकारी ने बताया कि पीड़ित परिवार को मुख्यमंत्री राहत कोष से आर्थिक सहायता दी जाएगी। साथ ही, आग लगने के कारणों की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं।
यह हादसा एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि आखिर किसानों को प्राकृतिक और मानवजनित आपदाओं से सुरक्षा देने के लिए क्या पर्याप्त कदम उठाए गए हैं? रमेश की तरह कई किसान हर साल ऐसे हादसों का शिकार होते हैं, लेकिन ठोस नीति और सुरक्षा उपायों की कमी से इनकी कुर्बानियां बेवजह जाती हैं।
सरकार और समाज को अब यह सोचने की जरूरत है कि 'जय जवान, जय किसान' का नारा सिर्फ भाषणों तक सीमित न रहे, बल्कि जमीनी स्तर पर भी किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
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