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civil war: अफ्रीकी देश सूडान में भयंकर गृहयुद्ध से भागकर चाड पहुंची 25 से 28 वर्षीय महिला को लगा कि वो अब सुरक्षित है। मगर यहाँ उसकी जिंदगी ने एक और दर्दनाक मोड़ ले लिया। भूख और मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण उसे यौन शोषण का सामना करना पड़ा। महिला ने बताया कि उसके 7 सप्ताह के बच्चे का जन्म उस समय हुआ, जब उसे एक सहायता कर्मी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया। यह सहायता कर्मी उसे भोजन और पैसे के बदले में शोषण का शिकार बना रहा था।
सिर्फ इस महिला ही नहीं, बल्कि कई अन्य महिलाओं और लड़कियों ने भी स्थानीय सुरक्षा कर्मियों और सहायता कर्मियों द्वारा यौन शोषण की घटनाओं का खुलासा किया है। एक मां ने अपनी दर्दनाक कहानी साझा करते हुए बताया कि जब उसके बच्चों के लिए भोजन खत्म हो गया, तो उसने एक सहायता कर्मी से मदद मांगी। उस कर्मी ने उसे हर बार करीब ₹1000 देने का प्रस्ताव रखा, मगर बच्चे के जन्म के बाद उसने महिला को छोड़ दिया।
ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि मानवीय सहायता प्रदान करने वाले संगठन अपने मूल उद्देश्य में विफल हो रहे हैं। राहत शिविरों में सुरक्षित स्थान और शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था मौजूद है, मगर महिलाएं या तो इनके बारे में नहीं जानतीं या फिर इनका उपयोग करने से डरती हैं।
युद्ध में अपने परिवार को खो चुकी 19 वर्षीय युवती ने कहा कि अगर उनके पास पर्याप्त संसाधन होते, तो उन्हें अपनी गरिमा नहीं खोनी पड़ती। मनोवैज्ञानिक दार अल-सलाम उमर ने बताया कि कई महिलाएं गर्भवती हो गईं, मगर समुदाय के कलंक के डर से गर्भपात नहीं करा पाईं। ये महिलाएं मानसिक रूप से टूट चुकी हैं और पति के बिना गर्भधारण करना उनके लिए एक बड़ा आघात बन गया है।
हालांकि, कई सहायता एजेंसियां इस शोषण को रोकने के प्रयास कर रही हैं। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के महासचिव क्रिस्टोफर लॉकयर ने कहा कि ऐसे मामलों की गंभीरता से जांच की जाएगी। मगर इस सब के बीच, शरणार्थी महिलाओं की सबसे बड़ी मांग रोज़गार और सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।