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Up Kiran, Digital Desk: आजकल काम करने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। अब 9 से 5 की नौकरी सिर्फ 'काम खत्म, घर जाओ' तक सीमित नहीं रह गई है। वर्क फ्रॉम होम, डेडलाइन का प्रेशर और हर वक्त ऑनलाइन रहने की मजबूरी ने हमारे काम और निजी जिंदगी के बीच की लाइन को धुंधला कर दिया है। इसका नतीजा? बढ़ता हुआ तनाव, अकेलापन और बर्नआउट (काम से पूरी तरह थक जाना)।

ऐसे में, अब कंपनियों की जिम्मेदारी सिर्फ अपने कर्मचारियों से काम लेना ही नहीं, बल्कि उनकी सेहत का ख्याल रखना भी बन गई है। और यहां सेहत का मतलब सिर्फ शारीरिक तंदुरुस्ती नहीं है।

जिम की मेंबरशिप से कहीं बढ़कर है वेलनेस

जब हम 'वर्कप्लेस वेलनेस' या 'कर्मचारी कल्याण' की बात करते हैं, तो ज्यादातर कंपनियों के दिमाग में जिम की फ्री मेंबरशिप या साल में एक बार हेल्थ चेकअप कराने का ख्याल आता है। लेकिन आज के समय में यह काफी नहीं है। असली वेलनेस का मतलब है कर्मचारी का हर तरह से 

मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health): क्या आपके ऑफिस में ऐसा माहौल है जहां आप तनाव या चिंता के बारे में खुलकर बात कर सकते हैं? क्या आपकी कंपनी मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद (जैसे काउंसलिंग) मुहैया कराती है? एक कर्मचारी दिमागी रूप से शांत और खुश होगा, तभी वह अपना 100% दे पाएगा।

भावनात्मक भलाई (Emotional Well-being): ऑफिस का माहौल कैसा है? क्या वहां जलन, गॉसिप और निगेटिविटी है या फिर एक-दूसरे का सम्मान और मदद करने वाला कल्चर है? एक अच्छा और पॉजिटिव माहौल कर्मचारी को काम करने के लिए रोज मोटिवेट करता है।

वित्तीय सुरक्षा (Financial Wellness): आज के समय में पैसे की चिंता एक बहुत बड़ा तनाव है। क्या आपकी कंपनी अपने कर्मचारियों को वित्तीय योजना (फाइनेंशियल प्लानिंग) बनाने में मदद करती है? या सैलरी के अलावा भी उन्हें कुछ ऐसे फायदे देती है जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो? जब कर्मचारी अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर निश्चिंत होता है, तो वह अपने काम पर ज्यादा फोकस कर पाता है।

शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health): बेशक, शारीरिक सेहत भी जरूरी है। इसमें काम के बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लेना, सही तरीके से बैठने के लिए आरामदायक कुर्सी होना और स्वस्थ खाने-पीने की आदतों को बढ़ावा देना शामिल है।

यह कोई 'खर्च' नहीं, बल्कि एक 'निवेश' है

बहुत सी कंपनियां वेलनेस प्रोग्राम्स को एक फालतू खर्च मानती हैं। लेकिन असल में यह कंपनी के भविष्य के लिए सबसे बड़ा निवेश है। क्यों?

बेहतर प्रोडक्टिविटी: जब कर्मचारी खुश और स्वस्थ महसूस करता है, तो वह ज्यादा मन लगाकर और बेहतर तरीके से काम करता है।

कर्मचारियों का कंपनी में टिकना: जिस कंपनी में कर्मचारियों का ख्याल रखा जाता है, वहां लोग नौकरी छोड़कर जल्दी नहीं जाते। इससे कंपनी को बार-बार नए लोगों को हायर करने और ट्रेनिंग देने के झंझट से छुटकारा मिलता है।

एक पॉजिटिव ब्रांड इमेज: जो कंपनी अपने लोगों का ध्यान रखती है, उसकी मार्केट में इज्जत बढ़ती है और अच्छे लोग खुद वहां काम करने के लिए आना चाहते हैं।

कंपनियां क्या कर सकती हैं?

वर्कप्लेस वेलनेस कोई रॉकेट साइंस नहीं है। इसकी शुरुआत छोटे-छोटे बदलावों से हो सकती है:

छुट्टियों को प्रोत्साहित करना, न कि 'हीरो' बनने के लिए छुट्टियां न लेने को।

काम के घंटे खत्म होने के बाद फोन या ईमेल करने से बचना।

मैनेजर्स को ट्रेनिंग देना कि वे अपनी टीम के साथ कैसे सहानुभूति और सम्मान से पेश आएं।

मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर खुलकर बात करने के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाना।

याद रखिए, एक दफ्तर सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारत नहीं होता, वो उन लोगों से बनता है जो वहां काम करते हैं। और जब वो लोग स्वस्थ और खुश रहेंगे, तभी कंपनी तरक्की करेगी।