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Up Kiran, Digital Desk: तमिलनाडु के डेल्टा जिलों में, जिन्हें राज्य का 'चावल का कटोरा' भी कहा जाता है, इस वक्त मातम पसरा हुआ है। यहां के किसानों के लिए बेमौसम और भारी बारिश 'काल' बनकर बरसी है और उनकी महीनों की मेहनत और सपनों को बहाकर ले गई है। हजारों एकड़ में कटाई के लिए तैयार खड़ी धान की फसल पूरी तरह से पानी में डूबकर बर्बाद हो गई है।

कृषि विभाग के शुरुआती अनुमानों के मुताबिक, अकेले तंजावुर और तिरुवरूर जिलों में ही 14,000 एकड़ से ज्यादा की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। लेकिन जमीन पर किसानों का दर्द इससे कहीं ज्यादा बड़ा है। उनका कहना है कि यह तो बस एक सरकारी आंकड़ा है, असल बर्बादी इससे कई गुना ज्यादा है।

पूरा साल अब क्या खाएंगे?

किसानों का दर्द शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। तिरुवरूर के एक किसान, एस. रमन ने रोते हुए अपनी आपबीती सुनाई, "मैंने इस बार अच्छी पैदावार की उम्मीद में बैंक से लोन लेकर खेती की थी। फसल इतनी अच्छी हुई थी कि बस दो दिन में कटाई शुरू होने वाली थी। लेकिन इस बारिश ने एक झटके में सब कुछ खत्म कर दिया। मेरी पूरी की पूरी फसल अब पानी के अंदर है। अब मैं बैंक का कर्ज कैसे चुकाऊंगा और अपने परिवार का पेट कैसे पालूंगा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"

कई किसानों ने तो अपनी धान की फसल काटकर खेतों में ही सुखने के लिए छोड़ी हुई थी, वह भी अब पानी में तैर रही है और पूरी तरह से सड़ चुकी है।

क्यों हुआ इतना बड़ा नुकसान?

इस तबाही का मुख्य कारण पिछले कुछ दिनों से बंगाल की खाड़ी के ऊपर बने कम दबाव का क्षेत्र है, जिसकी वजह से पूरे डेल्टा क्षेत्र में मूसलाधार बारिश हो रही है। इस बारिश ने धान की खेती के लिए सबसे महत्वपूर्ण 'सांबा' और 'थलडी' सीजन की फसलों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। ये वो फसलें थीं जो अब कटाई के लिए लगभग तैयार थीं और किसानों को इनकी अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद थी।

अब बस सरकार से ही है आखिरी उम्मीद

इस कुदरती आपदा ने किसानों को लाचार और बेबस बना दिया है। उनकी आंखें अब सिर्फ और सिर्फ सरकार की तरफ टिकी हैं। वे मांग कर रहे हैं:

तत्काल मुआवजे का ऐलान: सरकार को तुरंत बर्बाद हुई फसलों का सर्वे करवाकर उचित मुआवजा देना चाहिए।

फसल बीमा का भुगतान: जिन किसानों ने बीमा करवाया हुआ है, उन्हें बिना किसी देरी के क्लेम का भुगतान किया जाए।

तमिलनाडु सरकार ने अधिकारियों को नुकसान का आकलन करने के निर्देश दे दिए हैं। लेकिन किसानों के लिए हर गुजरता हुआ पल भारी पड़ रहा है। उन्हें डर है कि अगर जल्द ही सरकारी मदद उन तक नहीं पहुंची, तो वे कर्ज के बोझ तले पूरी तरह से दब जाएंगे।

यह घटना एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि हमारे देश का किसान प्रकृति और मौसम की अनिश्चितताओं के आगे कितना मजबूर है।