_1571842520.png)
Up Kiran, Digital Desk: आजकल की तेज़-तर्रार दुनिया में स्मार्टफोन और इंटरनेट जैसे उपकरण हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम कितनी देर तक इनसे दूर रह सकते हैं? ज्यादातर लोग घंटों अपने मोबाइल फोन में लगे रहते हैं, और उसे बार-बार चेक करते रहते हैं। यही कारण है कि आजकल मोबाइल एडिक्शन एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। फिर भी, भूटान जैसे देश ने डिजिटल जीवन और मानसिक शांति के बीच एक अद्भुत संतुलन कायम किया है, और यह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है।
भूटान की डिजिटल नीति: संतुलन की कला
भूटान ने तकनीक को न तो पूरी तरह से नकारा है और न ही अंधाधुंध अपनाया है। इस देश ने स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस्तेमाल को पूरी तरह से सीमित किया है, ताकि लोग मानसिक शांति और सामाजिक रिश्तों को प्राथमिकता दे सकें। भूटान के इस मॉडल में 'ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस' (GNH) का महत्वपूर्ण योगदान है। 1972 में, राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने यह विचार दिया था कि किसी देश का विकास केवल आर्थिक मापदंडों से नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की खुशहाली और आंतरिक संतोष से होना चाहिए।
इस नीति के तहत भूटान में समाज का विकास इस तरह से किया जाता है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो, संस्कृति बची रहे, और लोगों की मानसिक स्थिति तनावमुक्त रहे। भूटान में लोग अपने जीवन में संतुलन बनाए रखते हैं, जहां काम, परिवार और समाज के लिए समय निकाला जाता है, और पैसे की दौड़ से अधिक ध्यान से जीवन जिया जाता है।
डिजिटल डिटॉक्स: जीवनशैली का हिस्सा
भूटान में 'डिजिटल डिटॉक्स वीक' का आयोजन किया जाता है, जहां नागरिकों को कुछ दिनों के लिए मोबाइल, टीवी, और सोशल मीडिया से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। यहां के स्कूलों में बच्चों को यह सिखाया जाता है कि सोशल मीडिया का सीमित और उद्देश्यपूर्ण इस्तेमाल कैसे किया जाए। साथ ही, सरकारी दफ्तरों और विद्यालयों में भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है। यह केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक पहल है, जिससे वे धीमी और शांत जीवनशैली की ओर बढ़ें।
तकनीक का इस्तेमाल नियंत्रित: डिजिटल विकास की धीमी गति
भूटान में इंटरनेट की गति जानबूझकर धीमी रखी जाती है। अधिकतर इलाके पहाड़ी और ग्रामीण हैं, जहां तेज़ इंटरनेट की पहुंच नहीं है। भूटान ने 1999 तक टेलीविजन को भी अपनाया नहीं था। हालांकि, लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बहुत सीमित। सरकार ने जानबूझकर इंटरनेट और तकनीकी विकास को धीमी रफ्तार से अपनाया है ताकि लोग इसके लती न बनें।
यहां पर सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ पर कड़ी निगरानी रखी जाती है, ताकि समाज पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। सरकार का उद्देश्य यह है कि लोग सोशल मीडिया को सिर्फ टाइमपास या लाइक्स पाने के लिए न इस्तेमाल करें, बल्कि इसके उपयोग को समझदारी से करें।
प्रकृति और ध्यान: जीवन का अहम हिस्सा
भूटान की संस्कृति बौद्ध धर्म पर आधारित है, जिसमें आत्मनिरीक्षण, ध्यान और सादगी का बहुत महत्व है। यहां के धार्मिक स्थलों और मठों में मोबाइल फोन का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। सार्वजनिक आयोजनों, शादी या अंतिम संस्कार जैसी जगहों पर लोग फोन की बजाय व्यक्तिगत संवाद को प्राथमिकता देते हैं। यह आदत अब भूटान के समाज का हिस्सा बन चुकी है और इस तरह के नियमों ने वहां के नागरिकों को डिजिटल दुनिया से कुछ दूरी बनाए रखने में मदद की है।
कार्यस्थल पर भी डिजिटल ब्रेक
भूटान के कार्यालयों में काम के समय में मोबाइल का उपयोग बहुत कम किया जाता है। यहां पर 'टेक्नोलॉजी ब्रेक्स' का पालन किया जाता है, जहां एक घंटे के लिए पूरी टीम बिना स्क्रीन के काम करती है। यह वर्क लाइफ बैलेंस को सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जिससे कर्मचारियों को मानसिक शांति मिलती है और वे काम पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
चुनौतियां: तकनीकी विकास की सीमाएं
हालांकि भूटान का यह मॉडल कई देशों के लिए प्रेरणा है, लेकिन इसके कुछ फायदे और नुकसान भी हैं। सीमित तकनीक के कारण भूटान के आर्थिक विकास में कुछ रुकावटें आती हैं, और कभी-कभी युवाओं में सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स की लत बढ़ने लगती है। इसके अलावा, भूटान का तकनीकी विकास पड़ोसी देशों की तुलना में थोड़ा पीछे रह जाता है।
दुनिया के लिए एक संदेश
भूटान ने डिजिटल डिटॉक्स को एक ट्रेंड नहीं, बल्कि जीवनशैली के रूप में अपनाया है। यह दुनिया को यह संदेश देता है कि मोबाइल और इंटरनेट का सीमित और उद्देश्यपूर्ण उपयोग किया जाए। जहां भारत, अमेरिका और यूरोप में डिजिटल डिटॉक्स केवल एक हेल्थ ट्रेंड बन चुका है, वहीं भूटान में यह एक संस्कृति बन चुकी है।
--Advertisement--