
Up Kiran, Digital Desk: भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एक बड़े मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement - FTA) को लेकर बातचीत तेजी से आगे बढ़ रही है। यह एक ऐसी डील है जिसका दोनों पक्षों को बेसब्री से इंतजार है, क्योंकि इससे भारत के निर्यातकों के लिए यूरोप के अमीर बाजारों के दरवाजे खुल जाएंगे। लेकिन इस कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट है, और वह यह है कि जिस दिन इस ऐतिहासिक समझौते पर दोनों पक्ष दस्तखत कर देंगे, उस दिन भी जश्न मनाना थोड़ी जल्दबाजी होगी।
सच तो यह है कि डील साइन होने के बाद भी इसे जमीन पर लागू होने और इसका फायदा भारतीय कंपनियों को मिलने में कम से-कम एक साल या उससे भी ज्यादा का वक्त लग सकता है।
तो फिर आखिर पेंच फंसा कहां है?
दरअसल, पेंच भारत की तरफ से नहीं, बल्कि यूरोपीय संघ की तरफ से है। भारत में तो ऐसे किसी भी व्यापार समझौते को लागू करने की प्रक्रिया बहुत सरल है - बस केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिली और काम शुरू।
लेकिन यूरोपीय संघ 27 देशों का एक जटिल संगठन है, और यहां किसी भी समझौते को लागू करवाने की प्रक्रिया किसी चक्रव्यूह से कम नहीं है। इसमें कई चरण होते हैं:
कानूनी जांच-पड़ताल: सबसे पहले, समझौते के हर एक शब्द, हर एक लाइन की वकीलों द्वारा गहन जांच की जाती है ताकि बाद में कोई कानूनी अड़चन न आए।
24 भाषाओं का चक्रव्यूह: इसके बाद, इस पूरे भारी-भरकम समझौते का यूरोपीय संघ की सभी 24 आधिकारिक भाषाओं में अनुवाद किया जाता है। यह एक बहुत लंबा और थका देने वाला काम है।
यूरोपीय संसद और काउंसिल की हरी झंडी: अनुवाद के बाद, इस समझौते को यूरोपीय काउंसिल और फिर यूरोपीय संसद से मंजूरी दिलवानी पड़ती है।
सबसे बड़ी बाधा: 27 देशों की 'हां': यही वह चरण है जहां सबसे ज्यादा समय लगता है। संसद से पास होने के बाद, इस समझौते को सभी 27 सदस्य देशों की अपनी-अपनी संसदों में भी पास करवाना पड़ता है। अगर एक भी देश ने इसे मंजूरी देने में देरी की, तो पूरा मामला अटक जाता है।
पुराना अनुभव अच्छा नहीं रहा
यूरोपीय संघ का यह सिस्टम कितना धीमा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2019 में साइन हुई EU-Mercosur (दक्षिण अमेरिकी देशों का समूह) डील आज तक लागू नहीं हो पाई है क्योंकि कुछ यूरोपीय देश इसका विरोध कर रहे हैं।
क्यों जरूरी है यह डील?
इन तमाम बाधाओं के बावजूद, दोनों ही पक्ष इस डील को जल्द से जल्द अंजाम देना चाहते हैं। भारत अपने कपड़ा, कृषि उत्पादों और फार्मा सेक्टर के लिए यूरोप का बड़ा बाजार चाहता है। वहीं, यूरोप भी चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए भारत को एक भरोसेमंद और बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में देख रहा है।
फिलहाल, समझौते के लिए 11वें दौर की बातचीत जल्द ही शुरू होने वाली है, और उम्मीद की जा रही है कि दोनों पक्ष जल्द ही एकमत हो जाएंगे। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि असली इंतजार तो डील पर दस्तखत होने के बाद ही शुरू होगा।