
Up Kiran, Digital Desk: दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौतों में से एक, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से भारत के संभावित पुन: जुड़ाव की खबरें जोर पकड़ रही हैं। यह कदम तब उठाया जा रहा है जब अमेरिका, खासकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के बाद से, संरक्षणवादी व्यापार नीतियों और टैरिफ (सीमा शुल्क) को बढ़ावा दे रहा है। ऐसे में, भारत के लिए RCEP में वापसी के विचार का अपना एक अलग रणनीतिक और आर्थिक महत्व है।
क्यों बदला भारत का रुख? अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियां
भारत ने 2019 में अपनी चिंताओं के कारण RCEP से बाहर रहने का फैसला किया था, जिसमें घरेलू उद्योगों पर संभावित नकारात्मक प्रभाव और चीन जैसे देशों के साथ व्यापार घाटे का बढ़ना प्रमुख था। हालाँकि, बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापार बाधाओं ने भारत को अपनी व्यापार रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति और विभिन्न देशों पर लगाए गए आयात शुल्क ने भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं, जिससे भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई है।
RCEP में वापसी के फायदे: आर्थिक विकास का नया रास्ता?
RCEP, जिसमें 10 आसियान देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड जैसे प्रमुख देश शामिल हैं, एक विशाल एकीकृत बाजार का निर्माण करता है। यदि भारत इसमें शामिल होता है, तो उसे इन देशों के बाजारों में अपने उत्पादों के लिए बेहतर पहुंच मिल सकती है।
निर्यात को बढ़ावा: RCEP सदस्य देशों के बीच टैरिफ में कमी से भारतीय वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
आपूर्ति श्रृंखलाओं का एकीकरण: भारत क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक प्रभावी ढंग से एकीकृत हो सकता है, जिससे उत्पादन लागत कम हो सकती है और दक्षता बढ़ सकती है।
आर्थिक विकास को गति: एक बड़े और एकीकृत बाजार तक पहुंच भारत की आर्थिक वृद्धि को गति दे सकती है।
रणनीतिक लाभ: चीन के बढ़ते प्रभाव और अमेरिका की अनिश्चित व्यापार नीतियों के बीच, RCEP भारत को क्षेत्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान कर सकता है।
चिंताएं बरकरार: घरेलू उद्योग और चीन का प्रभाव
हालांकि RCEP में वापसी के कई फायदे हैं, भारत के लिए अपनी चिंताओं को दूर करना भी महत्वपूर्ण होगा।
घरेलू उद्योगों पर दबाव: निम्न आयात शुल्क के कारण, भारतीय उद्योगों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को चीन जैसे देशों से सस्ते आयातित माल के बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
चीन का प्रभुत्व: RCEP में चीन एक प्रमुख आर्थिक शक्ति है, और इसके नियमों के भारत के घरेलू उद्योगों पर पड़ने वाले प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक है।
आगे का रास्ता: संतुलन की तलाश
भारत सरकार रणनीतिक रूप से RCEP के पुनर्मूल्यांकन कर रही है, यह समझने की कोशिश कर रही है कि क्या इसके लाभ इसकी चिंताओं से अधिक हैं। ऐसे में, सरकार घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और निर्यात के अवसरों को संतुलित करने के लिए कड़े नियमों और शर्तों के साथ RCEP में शामिल होने पर विचार कर सकती है। यह निर्णय भारत की विदेश और व्यापार नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच देश की राह तय करेगा।
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