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भारत और रूस के बीच कूटनीतिक मैत्री के 78 वर्ष पूरे हो गए हैं। शीत युद्ध से लेकर पाकिस्तान युद्ध तक रूस ने हमेशा भारत का समर्थन किया है। अब एक बार फिर रूस भारत की लंबे समय से चली आ रही मांग का खुलकर समर्थन कर रहा है। रूस ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिए जाने की अपनी मांग दोहराई है। इसके अलावा, रूसी विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों को दोस्ती के 78 साल पूरे होने पर बधाई दी है और उम्मीद जताई है कि आने वाले वर्षों में भारत के साथ संबंध और बेहतर होते रहेंगे।

टेलीग्राम पर एक संदेश में रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम भारत के साथ कूटनीतिक साझेदारी को और मजबूत करना चाहते हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों को बनाए रखते हुए दोनों देशों के नेताओं के बीच बैठकें, संवाद और दौरे जारी रहेंगे। 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच दो शिखर सम्मेलन होंगे। पुतिन इस वर्ष भी भारत का दौरा करेंगे। रूस ने प्रधानमंत्री मोदी को अपनी विजय परेड में आमंत्रित किया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर इसमें भाग लेंगे।

भारत-रूस मैत्री में वृद्धि

दोनों देशों के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। रूस-भारत व्यापार 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसके अलावा, दोनों देश परमाणु ऊर्जा पर भी सहयोग कर रहे हैं और तमिलनाडु के कुडनकुलम में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। रूस ने कहा है कि दोनों देशों के बीच रक्षा, अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जारी रहेगा।

सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव क्यों अटका हुआ है?

भारत कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। यह विश्व का सबसे शक्तिशाली संगठन है मगर विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत इसका स्थायी सदस्य नहीं है। 1945 में गठित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं, जिनमें से केवल 5 स्थायी हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं, जबकि 10 देश अस्थायी सदस्य हैं, जिनका चुनाव हर दो साल में होता है। स्थायी सदस्यों के पास वीटो शक्ति होती है, मगर अस्थायी सदस्यों के पास यह शक्ति नहीं होती। भारत को रूस, अमेरिका और फ्रांस समेत दुनिया के कई शक्तिशाली देशों का समर्थन प्राप्त है, मगर चीन इसमें बाधा डाल रहा है। चीन नहीं चाहता कि भारत एशिया में उसके एकाधिकार को चुनौती दे। यही कारण है कि चीन सुरक्षा परिषद में केवल एशिया का प्रतिनिधित्व करना चाहता है।