Up Kiran, Digital Desk: नवंबर 2024 के बाद से प्रधानमंत्री मोदी स्वयं छह अफ्रीकी देशों—नाइजीरिया, मारीशस, घाना, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और इथियोपिया—की यात्रा कर चुके हैं। इन दौरों को भारत की अफ्रीका नीति में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
विकास सहायता और निवेश में भारत की मजबूत मौजूदगी
भारत ने अफ्रीकी देशों को अब तक विकास सहायता, अनुदान और रियायती कर्ज के रूप में 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की मदद देने की घोषणा की है या उसका वितरण किया है। पिछले तीन वर्षों में भारत ने शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल इकोनॉमी, कनेक्टिविटी और रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रों में अफ्रीका के एक दर्जन से अधिक देशों के साथ समझौते किए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री स्तर पर हो रहे निरंतर संवाद और दौरे भारत की कूटनीति को अफ्रीका में नई ऊर्जा दे रहे हैं। इसका असर व्यापार और निवेश के आंकड़ों में भी साफ दिखता है।
व्यापार में रिकॉर्ड वृद्धि
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले पांच वर्षों में लगभग दोगुना होकर 2024-25 में 100 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2025 में यह व्यापार 103 अरब डॉलर रहा, जो 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। यह किसी भी महाद्वीप के साथ भारत के व्यापार में सबसे तेज वृद्धि मानी जा रही है।
भारत सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक इस व्यापार को बढ़ाकर 150 अरब डॉलर किया जाए। वहीं अफ्रीका में भारतीय कंपनियों का कुल निवेश 75 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है, जिससे भारत अफ्रीका के शीर्ष पांच निवेशक देशों में शामिल हो गया है। कई देशों में भारत का निवेश और आर्थिक सहयोग चीन से भी अधिक हो चुका है।
इथियोपिया और केन्या में भारत की मजबूत स्थिति
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली ने हाल ही में कहा कि भारत उनके देश में सबसे बड़ा विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक है, जहां 615 से अधिक भारतीय कंपनियां सक्रिय हैं। उल्लेखनीय है कि जहां चीन के किसी विश्वविद्यालय ने इथियोपिया में अपना पूर्ण कैंपस नहीं खोला, वहीं भारत के प्रतिष्ठित आईआईटी ने तंजानिया के जंजीबार में अपना कैंपस स्थापित किया है।
वर्ष 2023 में भारत केन्या का सबसे बड़ा एशियाई व्यापार साझेदार बना, जिसे चीन की बढ़ती मौजूदगी के बीच एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। मारीशस भी ऐसा देश है, जो आर्थिक सहयोग में भारत को प्राथमिकता देता है।
चीन का प्रभाव और भारत की अलग रणनीति
हालांकि, यह भी सच है कि चीन अब भी अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार और निवेशक बना हुआ है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन अफ्रीका में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं चला रहा है। सितंबर 2024 में बीजिंग में हुए फोरम ऑन चाइना-अफ्रीका कोऑपरेशन में चीन ने अगले तीन वर्षों में अफ्रीका को 50.7 बिलियन डॉलर की सहायता देने की घोषणा की थी।
इसके विपरीत, भारत ने कर्ज आधारित प्रतिस्पर्धा से हटकर साझेदारी आधारित मॉडल अपनाया है।
लोकतांत्रिक देशों पर भारत का फोकस
भारत की नई अफ्रीका नीति का केंद्र वे देश हैं, जहां संसदीय और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं मजबूत हो रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हीं देशों का दौरा किया है, जहां लोकतांत्रिक संस्थाएं सक्रिय हैं। भारत की रणनीति में कर्ज जाल नहीं, बल्कि क्षमता निर्माण, स्थानीय विकास और आपसी सहयोग को प्राथमिकता दी गई है।
भारतीय कूटनीतिकारों का मानना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आईटी और डिजिटल सहयोग जैसी भारत की सॉफ्ट पावर लंबे समय में चीन के मॉडल से अधिक प्रभावी साबित होगी। साथ ही अफ्रीकी देशों में मजबूत होती भारत की छवि उसे ‘ग्लोबल साउथ’ के नेता के रूप में स्थापित करेगी, जिससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी को भी बल मिलेगा।




