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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में इन दिनों एक बार फिर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है क्या प्रदेश के नेताओं की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर आम जनता का भरोसा कायम रह पाएगा? जन सुराज अभियान चला रहे प्रशांत किशोर ने राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर जो आरोप लगाए हैं, उन्होंने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है।
प्रशांत किशोर के आरोपों की गूंज
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया से बातचीत करते हुए प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और पूर्व आपराधिक मामलों को लेकर कई गंभीर बातें सामने रखीं। उन्होंने कहा कि सम्राट चौधरी के पास अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से D-Litt की डिग्री है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि उन्होंने कभी 10वीं पास नहीं की।
किशोर ने इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग की है और कहा है कि चौधरी को अपने मैट्रिकुलेशन का प्रमाणपत्र सार्वजनिक करना चाहिए।
नामों में बदलाव और पुराने केस पर उठे सवाल
किशोर ने यह भी दावा किया कि सम्राट चौधरी ने समय-समय पर कई बार अपना नाम बदला है। उन्होंने बताया कि पहले उनका नाम राकेश कुमार था, फिर राकेश कुमार मौर्य, उसके बाद सम्राट कुमार मौर्य और अंततः सम्राट चौधरी।
उन्होंने वर्ष 1998 की एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि चौधरी पर हत्या के एक मामले में गंभीर आरोप लगे थे। किशोर के अनुसार, उस मामले में एक बम धमाके में छह लोगों की जान चली गई थी। यह भी कहा गया कि सम्राट चौधरी को इस केस में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन नाबालिग होने के कारण बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया।
डिग्री का रहस्य: 7वीं पास से D-Litt तक
प्रशांत किशोर ने चौधरी के शैक्षणिक दस्तावेजों को लेकर भी कई सवाल खड़े किए। उन्होंने बताया कि 1998 में जब कोर्ट में हत्या के केस की सुनवाई हो रही थी, तब बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड ने अदालत में हलफनामा देकर बताया था कि चौधरी 10वीं परीक्षा में असफल रहे थे और उन्हें सिर्फ 234 अंक मिले थे।
इतना ही नहीं, 2010 में दायर किए गए चुनावी हलफनामे में उन्होंने खुद को केवल 7वीं पास बताया था। किशोर ने चौंकते हुए सवाल किया कि जब कोई व्यक्ति 10वीं भी पास नहीं है, तो वह D-Litt की डिग्री का दावा कैसे कर सकता है?
अन्य नेताओं पर भी निशाना
प्रशांत किशोर ने अपनी बात सिर्फ सम्राट चौधरी तक सीमित नहीं रखी। उन्होंने जद (यू) के नेता और राज्य मंत्री अशोक चौधरी को भी घेरा। किशोर ने आरोप लगाया कि अशोक चौधरी ने बीते तीन सालों में करीब ₹200 करोड़ की संपत्ति खरीदी है, जिनमें से कई ज़मीनें उनकी पत्नी और बेटी के नाम पर दर्ज हैं। उन्होंने इस निवेश को “संदिग्ध” और “अवैध” करार दिया।
जनता के सवाल, नेताओं की जवाबदेही
यह पूरा मामला सिर्फ एक नेता की डिग्री या पुराने आरोपों तक सीमित नहीं है। सवाल बड़ा है—क्या सार्वजनिक पदों पर बैठे नेताओं की पारदर्शिता और सच्चाई की जांच जरूरी नहीं? प्रशांत किशोर के इन आरोपों से जनता के मन में संदेह पैदा हुआ है और अब निगाहें चुनाव आयोग की ओर टिकी हैं कि वह इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।