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Up Kiran, Digital Desk: सनातन धर्म में व्रतों का विशेष महत्व है, और इन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat), जो भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) को समर्पित है. यह व्रत त्रयोदशी तिथि (Trayodashi Tithi) को पड़ता है और इसका मुख्य समय प्रदोष काल (Pradosh Kaal) यानी सूर्यास्त के आसपास का होता है. हर महीने दो प्रदोष व्रत आते हैं, और जिस दिन यह त्रयोदशी पड़ती है, उसी वार के नाम से इसे जाना जाता है. बुधवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत 'बुध प्रदोष व्रत' (Budh Pradosh Vrat) कहलाता है, और इसकी महिमा का वर्णन तो शिव पुराण में भी मिलता है! यह व्रत न केवल महादेव की कृपा दिलाता है, बल्कि बुध ग्रह (Budh Grah) से संबंधित दोषों को भी दूर कर व्यक्ति को बुद्धि, व्यापार और शिक्षा में सफलता दिलाता है. अगर आप भी जीवन में धन, संतान या सुख-शांति चाहते हैं, तो बुध प्रदोष व्रत की यह चमत्कारी कथा (Budh Pradosh Vrat Katha) आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं!

क्या है प्रदोष काल और क्यों है ये इतना खास?

प्रदोष काल वह शुभ समय होता है जब दिन और रात का मिलन होता है, यानी सूर्यास्त के ठीक बाद का समय. मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं. यही कारण है कि प्रदोष काल में शिव आराधना (Shiv Aradhana) करने से भगवान शिव अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इस पवित्र समय में शिवलिंग पर जलाभिषेक (Shivling Jalabhishek), बिल्वपत्र (Bilva Patra) और धतूरा चढ़ाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.

बुध प्रदोष व्रत की महिमा: जब महादेव ने स्वयं खोली किस्मत के द्वार!

बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat Mahima) का अपना एक अलग महत्व है. बुधवार का दिन भगवान गणेश (Lord Ganesha) और बुध ग्रह (Mercury Planet) से संबंधित है. इसलिए बुध प्रदोष व्रत रखने से न केवल भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि बुध ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से भी मुक्ति मिलती है. यह व्रत विशेष रूप से बुद्धि, ज्ञान, वाणी और व्यापार में सफलता के लिए रखा जाता है. जो दंपत्ति संतान सुख (Santan Prapti) से वंचित हैं, उनके लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है. यह व्रत जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाने वाला है.

बुध प्रदोष व्रत कथा: एक ब्राह्मण स्त्री की सूनी झोली कैसे भर गई खुशियों से!

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बुध प्रदोष व्रत की कथा (Budh Pradosh Vrat Story) एक गरीब ब्राह्मण स्त्री से जुड़ी है.
एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण महिला रहती थी. उसका पति जीवित नहीं था और उसके पास आय का कोई साधन नहीं था. वह अपने इकलौते बेटे के साथ जैसे-तैसे अपना जीवन गुजर-बसर कर रही थी. वह रोज सुबह अपने बेटे के साथ भीख मांगने निकलती और जो कुछ मिल जाता, उसी से अपना पेट भरती थी.

एक दिन जब वह वापस लौट रही थी, तो उसे एक घायल युवक मिला. वह युवक दर्द से कराह रहा था और पूरी तरह से बेसुध था. दयालु ब्राह्मण महिला को उस पर दया आ गई. वह उसे अपने घर ले आई और उसकी सेवा करने लगी. कुछ दिनों की सेवा से युवक ठीक हो गया. जब युवक होश में आया, तो उसने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उसके पिता ने उसे एक राजकुमारी से विवाह करने के लिए भेजा था, लेकिन रास्ते में कुछ विद्रोहियों ने उस पर हमला कर दिया और उसे घायल कर दिया. राजकुमार ने अपना नाम धर्मगुप्त बताया.

ब्राह्मण महिला ने राजकुमार धर्मगुप्त से कहा कि वह उसके साथ ही रहे. एक दिन राजकुमार धर्मगुप्त घूमते हुए एक गंधर्व कन्या (Gandharva Kanya) के पास पहुंचा, जो तालाब में स्नान कर रही थी. उस गंधर्व कन्या का नाम अंशुमती था. धर्मगुप्त अंशुमती पर मोहित हो गया और दोनों ने विवाह करने का फैसला कर लिया. लेकिन धर्मगुप्त ने अंशुमती से कहा कि उसे पहले अपने माता-पिता की आज्ञा लेनी होगी.

राजकुमार धर्मगुप्त ब्राह्मण महिला और अपने बेटे के साथ फिर से भीख मांगने चला गया. तभी रास्ते में उन्हें एक महात्मा मिले. महात्मा ने ब्राह्मण महिला को बहुत दुखी देखा. महात्मा ने महिला से कहा, "तुम बहुत गरीब हो और दुखी हो. अगर तुम अपने सारे कष्टों से मुक्ति पाना चाहती हो और जीवन में सुख-समृद्धि पाना चाहती हो, तो बुध प्रदोष व्रत करो." महात्मा ने उसे बुध प्रदोष व्रत की विधि (Budh Pradosh Vrat Vidhi) बताई और यह भी बताया कि इस व्रत को करने से उसे अवश्य ही लाभ होगा.

ब्राह्मण महिला ने महात्मा की बात मान ली और उसने पूरी श्रद्धा से बुध प्रदोष व्रत का पालन किया. वह हर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करती थी और विधि-विधान से व्रत रखती थी. कुछ समय बाद, राजकुमार धर्मगुप्त को उसका राज्य वापस मिल गया और उसने अंशुमती से विवाह कर लिया. धर्मगुप्त ने ब्राह्मण महिला और उसके बेटे को भी अपने महल में बुला लिया और उन्हें सम्मानपूर्वक रखा. कुछ समय बाद, ब्राह्मण महिला के बेटे का विवाह भी एक सुंदर कन्या से हो गया और उनका जीवन सुखमय हो गया.

इस कथा का सार यह है कि बुध प्रदोष व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को धन-संपत्ति, संतान, सुख-शांति और समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. भगवान शिव अपने भक्तों पर सदैव कृपा करते हैं, बस सच्ची श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए.

बुध प्रदोष व्रत के चमत्कारी लाभ: बदल देंगे आपकी तकदीर!

बुध प्रदोष व्रत का पालन करने से व्यक्ति को कई अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं:

ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि (Gyan aur Buddhi mein Vriddhi): बुध ग्रह बुद्धि और ज्ञान का कारक है. यह व्रत छात्रों और शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है, यह उनकी एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है.

व्यापार और करियर में सफलता (Vyapar aur Career mein Safalta): यदि आप अपने व्यवसाय या करियर में बाधाओं का सामना कर रहे हैं, तो यह व्रत आपको सफलता और उन्नति दिला सकता है.

संतान सुख की प्राप्ति (Santan Sukh Prapti): जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है, उन्हें यह व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए.

धन-संपत्ति की वृद्धि (Dhan Sampatti mein Vriddhi): यह व्रत आर्थिक संकटों को दूर कर धन-धान्य की वृद्धि करता है और जीवन में समृद्धि लाता है.

ग्रह दोषों से मुक्ति (Grah Doshon se Mukti): बुध ग्रह के अशुभ प्रभावों या कुंडली में अन्य किसी ग्रह दोष को शांत करने में यह व्रत सहायक है.

रोगों से छुटकारा (Rogon se Chutkara): स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना जाता है.

मानसिक शांति (Mansik Shanti): शिव पूजा और व्रत से मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है.

कैसे करें बुध प्रदोष व्रत की पूजा? (Budh Pradosh Vrat Puja Vidhi)

बुध प्रदोष व्रत का पालन करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती है:

सुबह का स्नान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

संकल्प: भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें कि आप इस व्रत को पूरी निष्ठा से रखेंगे.

दिनभर का उपवास: दिनभर निराहार (बिना कुछ खाए) या फलाहार (फल और दूध) पर रहें. कुछ भक्त जल भी ग्रहण नहीं करते हैं.

प्रदोष काल पूजा: प्रदोष काल (शाम को सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक) में ही शिव पूजा करें.

शिवलिंग स्थापना: एक साफ स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक करें.

सामग्री अर्पित करें: शिवलिंग पर बेलपत्र (Belpatra), धतूरा, भांग, शमी पत्र, फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं.

मंत्र जाप: 'ओम नमः शिवाय' (Om Namah Shivay) मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. शिव चालीसा (Shiv Chalisa) या शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) का पाठ भी कर सकते हैं.

कथा श्रवण: बुध प्रदोष व्रत कथा (Budh Pradosh Vrat Katha) का पाठ या श्रवण करें.

आरती: पूजा के अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें.

व्रत का पारण: रात्रि में जागरण करें और अगले दिन सुबह स्नान के बाद भगवान शिव को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें.

क्या आपकी किस्मत भी बदलने वाली है?

बुध प्रदोष व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आपकी सच्ची श्रद्धा और महादेव के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है. यह व्रत आपको न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराता है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी आपको सशक्त बनाता है. अगर आप भी अपने जीवन में कुछ नया, कुछ बेहतर हासिल करना चाहते हैं, तो इस बुध प्रदोष व्रत को पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ अवश्य करें. महादेव की कृपा से आपकी भी सूनी झोली खुशियों से भर जाएगी!

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