
Up Kiran, Digital Desk: जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की सनातन परंपरा, भक्ति और आस्था का एक जीता-जागता प्रमाण है। हर साल लाखों श्रद्धालु ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के दिव्य रथों को खींचने के लिए एकत्रित होते हैं। यह एक ऐसा अनुभव है जो जीवन भर याद रहता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन भव्य रथों से जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प और अद्भुत तथ्य भी हैं, जो इस यात्रा को और भी खास बनाते हैं? आइए जानते हैं 2025 की रथ यात्रा से पहले इन 5 अनसुनी बातों को:
1. हर साल नए सिरे से बनाए जाते हैं रथ:
शायद यह सबसे आश्चर्यजनक तथ्य है! भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए हर साल नए रथ बनाए जाते हैं। ये रथ नीम (धौसा) जैसे विशेष पेड़ों की ताज़ी लकड़ियों से बनाए जाते हैं। यह प्रक्रिया अक्षय तृतीया के दिन शुरू होती है और चंदन यात्रा के दौरान पूरी होती है। यह परंपरा और भक्ति का एक अनूठा संगम है, जहाँ लाखों लोग लकड़ी से बने इन विशाल रथों को खींचते हैं।
2. तीनों रथों के नाम, रंग और ध्वज हैं अलग:
प्रत्येक देवता के रथ की अपनी एक अलग पहचान है:
3. ऊंचाई में भी है अंतर:
इन रथों की ऊंचाई में भी slight (थोड़ा) अंतर होता है, जो उन्हें और खास बनाता है:
4. पहियों की संख्या भी है भिन्न:
प्रत्येक रथ में पहियों की संख्या अलग-अलग होती है, जो उनके डिज़ाइन और संरचना में एक और अनोखापन जोड़ती है:
5. निर्माण में कोई धातु नहीं, सिर्फ लकड़ी और श्रद्धा:
इन रथों के निर्माण में एक भी धातु की कील या अन्य धातु का उपयोग नहीं किया जाता। इन्हें पूरी तरह से लकड़ी और परंपरागत कारीगरी से बनाया जाता है। हजारों कुशल कारीगर (जिन्हें 'सेवक' कहा जाता है) कई हफ्तों तक लगन से काम करते हैं ताकि इन भव्य रथों को आकार दे सकें। रथों को खींचना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह माना जाता है कि इसे करने से पुण्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और यह सीधे मोक्ष की ओर ले जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा सचमुच एक ऐसा अद्भुत और गौरवशाली अनुभव है जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की गहराई को दर्शाता है। ये रथ केवल परिवहन के साधन नहीं, बल्कि स्वयं में आस्था और कला के प्रतीक हैं।
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