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Up Kiran, Digital Desk: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव का वक्त करीब आ रहा है, युवा वोटर्स की भूमिका और उनकी पसंद पर खास ध्यान दिया जा रहा है। प्रशांत किशोर, जो राजनीतिक सलाहकार से नेता बने हैं, इस बार अपनी नई पार्टी जनसुराज के साथ चुनावी दंगल में हैं। खास बात यह है कि युवा वर्ग में उनके प्रति खासा उत्साह देखा जा रहा है। उनकी सक्रियता और जनता के बीच पहुंच ने बिहार के राजनीतिक माहौल को नया रंग दिया है।
प्रशांत किशोर के हमले और उनके असर
पीके ने हाल ही में बीजेपी के दिग्गज नेताओं मंगल पांडेय और सम्राट चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। साथ ही, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी को भी निशाने पर लिया गया है। इन आरोपों ने राजनीतिक गहमागहमी बढ़ा दी है और बीजेपी के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। प्रशांत किशोर के इन तीव्र हमलों ने युवा मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता को और बढ़ावा दिया है।
बीजेपी की ‘साइलेंट’ रणनीति
बीजेपी ने अब तक खुले तौर पर प्रशांत किशोर के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे प्रचार का हथकंडा बताया है। मगर, पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पीके को नियंत्रित करने के लिए एक गुप्त योजना तैयार की है। इस ‘साइलेंट प्लान’ के तहत मीडिया या सार्वजनिक मंचों पर पीके को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाएगा। पार्टी का मकसद है कि उनके नाम को चर्चा से दूर रखा जाए ताकि वे राजनीतिक विवादों के केंद्र में न आएं।
युवाओं को जोड़ने की बीजेपी की कोशिशें
पीके के युवा वर्ग में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बीजेपी ने भी अपने अभियान को और तेज कर दिया है। बूथ स्तर पर सतर्कता बढ़ाई गई है और युवा मतदाताओं से जुड़ने के लिए नुक्कड़ सभाएं और चुनावी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पार्टी की कोशिश है कि वे युवाओं को सीधे संपर्क में लाकर अपने पक्ष में करें।
जमीनी स्तर पर बीजेपी की तैयारी
चुनाव से पहले बीजेपी ने विभिन्न इलाकों में फीडबैक और सर्वे शुरू कर दिए हैं ताकि प्रशांत किशोर की पकड़ को समझा जा सके। रिपोर्टों के मुताबिक, पीके एक प्रभावशाली खिलाड़ी जरूर हैं, लेकिन पार्टी अपने संगठन और प्रचार की ताकत पर भरोसा जताती है कि वे एनडीए की वोट बैंक को टूटने से बचा पाएंगे। इसके साथ ही, पार्टी ने नीतीश कुमार की छवि को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर पर प्रचार को और प्रभावी बनाने के निर्देश दिए हैं।