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Punjab fake encounter case: 1993 के तरनतारन फर्जी मुठभेड़ मामले में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए मोहाली सीबीआई अदालत ने गुरुवार को पंजाब के दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई। 32 साल बाद मिले इस न्याय में कोर्ट ने तत्कालीन एसएचओ पट्टी सीता राम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि कर्मचारी रामपाल को 5 साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। आरोपी सीता राम (80 वर्ष) को आईपीसी की धारा 302, 201 और 218 के तहत तथा राज्यपाल (आयु 57 वर्ष) को धारा 201 और 120-बी के तहत दोषी ठहराया गया है।

फैसले के बाद मृतक युवकों के परिवार भावुक

32 साल बाद मामले में अदालत का फैसला आने के बाद दोनों मृतक युवकों के परिजनों की आंखों में आंसू आ गए और भावुक तस्वीर सामने आई। इस अवसर पर मृतक की पत्नी सुखवंत ने कहा कि वे अब उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगी ताकि इस मामले में बरी हुए आरोपियों को भी सजा मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 1995 में शुरू हुई थी जांच

सीबीआई ने 1995 में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर मामले की जांच की। आरम्भ में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और 27.11.1996 को ज्ञान सिंह नामक व्यक्ति का बयान दर्ज किया गया और बाद में फरवरी 1997 में सीबीआई ने पुलिस अधीक्षक कैरों और पट्टी पुलिस स्टेशन के एएसआई नोरंग सिंह तथा जम्मू के अन्य के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 364/34 के अंतर्गत एक नियमित मामला आर/सी: 11(एस)97/एसआईयू-XVI/जेएमयू दर्ज किया।

किन दो युवकों की फर्जी मुठभेड़ हुई?

सीबीआई के वकील ने आगे कहा कि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर जांच की, जो साबित करता है कि 30.1.1993 को गुरदेव सिंह उर्फ ​​देबा पुत्र ज्ञान सिंह निवासी तरनतारन को एएसआई नोरंग सिंह, पुलिस पोस्ट करन, तरनतारन के प्रभारी के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी द्वारा उसके निवास से उठाया गया था और इसके बाद 05.02.1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह, पीएस पट्टी, तरनतारन के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी द्वारा गांव बहमनीवाला, तरनतारन में उसके निवास से उठाया गया था। बाद में दोनों को दिनांक 6.2.1993 को थाना पट्टी के भागुपुर क्षेत्र में मुठभेड़ में मारा गया दिखाया गया तथा मुठभेड़ की झूठी कहानी बनाकर थाना पट्टी, तरनतारन में मुकदमा/एफआईआर नं. 9/1993 दर्ज किया गया।

दोनों मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार लावारिस अवस्था में कर दिया गया तथा उन्हें उनके परिवारों को नहीं सौंपा गया। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों हत्या, जबरन वसूली आदि के 300 मामलों में शामिल हैं मगर सीबीआई जांच में यह तथ्य झूठा पाया गया।