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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव की बिसात बिछी हुई है, जहां एक तरफ महागठबंधन और दूसरी तरफ एनडीए, दोनों अपनी-अपनी रणनीतियों पर जोर दे रहे हैं। सत्ता की जंग में महागठबंधन की कोशिश है कि एनडीए को हराकर राज्य में सत्ता की कमान अपने हाथों में लें। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं, क्योंकि महागठबंधन में अंदरूनी मतभेदों और मनमुटावों ने इस अभियान को और भी जटिल बना दिया है।

यह संघर्ष पिछले दिनों बिहार के राजनीतिक गलियारों में उस वक्त दिखाई दिया, जब कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार ने महागठबंधन के सीएम चेहरे के बारे में बयान दिया। हाल ही में आयोजित एक मार्च के दौरान, कन्हैया कुमार को कांग्रेस नेताओं के साथ ट्रक पर देखा गया। लेकिन जैसे ही वह वहां पहुंचे, उन्हें गाड़ी से उतार दिया गया। यह घटना इस बात का संकेत देती है कि लालू यादव के परिवार में कन्हैया के लिए कोई खास जगह नहीं है, जबकि कन्हैया ने खुद तेजस्वी यादव को CM के चेहरे के रूप में स्वीकार किया है।

महागठबंधन के भीतर इस समय सीएम उम्मीदवार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। आरजेडी ने तो तेजस्वी यादव को अपना चेहरा बना लिया है, लेकिन कांग्रेस इस पर अभी तक स्पष्ट रूप से कोई घोषणा नहीं कर पाई है। कन्हैया कुमार ने हालांकि साफ तौर पर यह कहा है कि तेजस्वी यादव को CM का चेहरा बनाना ही सबसे उचित है, क्योंकि आरजेडी महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पास सबसे ज्यादा विधायक भी हैं।

कन्हैया ने अपने बयान में यह भी कहा कि विपक्षी दलों की कोशिशें सीएम चेहरे को लेकर सिर्फ एक बेमतलब का विवाद खड़ा करने की हैं, ताकि जनता के ध्यान को असली मुद्दों से हटा दिया जाए। वहीं, कन्हैया के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से साफ जाहिर है कि वह सिर्फ खुद को ही नहीं, बल्कि बिहार के युवा वर्ग को भी एक नया रास्ता दिखा रहे हैं।

तथापि, एक सवाल यह उठता है कि कन्हैया कुमार को लालू यादव के परिवार में वह स्वीकार्यता क्यों नहीं मिल रही है, जबकि वह तेजस्वी यादव को CM का चेहरा मान चुके हैं। बिहार की राजनीति में कन्हैया कुमार की एंट्री के पक्ष में लालू यादव कभी नहीं रहे हैं। इसके बावजूद कन्हैया कुमार ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।