धर्म डेस्क। सनातन संस्कृति में कांवड़ यात्रा को अतिपवित्र, संकल्पशक्ति वाला एवं जीवन यात्रा का प्रतीक माना गया है। कांवड़ यात्रा का उद्देश्य अनुशासन, सात्विकता और वैराग्य के साथ ईश्वरीय शक्ति से जुड़ना है। कांवड़ यात्रा से संकल्प शक्ति एवं आत्मविश्वास जागृत होता है। कांवर उठाने वाले कांवरिया कहे जाते हैं, जो एक बांस की डण्डी और उससे जुड़े दो पात्र में नदियों या सरोवर का पवित्र जल भरकर शिव का जयघोष करते हुए पैदल अपने घर से शिवजी को जल चढ़ाने पैदल ही निकलते हैं। कावंरियों की सेवा भी फलदाई मानी गयी है।
शास्त्रों के अनुसार कांवड़ से जुड़े पात्रों को ब्रह्मघट और विष्णुघट कहा जाता है। चूंकि शिव बांस में समाहित हैं, इसलिए कांवड़िया कांवड़ के माध्यम से साक्षात ब्रह्मा, विष्णु, शिव, तीनों की कृपा एक साथ प्राप्त करते हैं। कांवड़ यात्रा से शिव भक्ति के साथ ही व्यक्तिगत विकास में भी सहायक है। इसीलिये तो श्रावण में लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा कर शिवलिंगों का जलाभिषेक करते हैं।
धर्म शास्त्रों में ‘कांवड़’ उठाने वाले कांवड़िया को शिवयोगी के समान बताया गया है, क्योंकि कांवड़ यात्रा के समय कांवड़िया मन, वाणी एवं कर्म से शिव सामान हो जाते हैं और सब में सभी जीवों में सदाशिव का ही दर्शन करते हैं। सनातनी लोग कांवड़ यात्रा के दर्शन और कांवरियों की सेवा को शुभ फल देने वाला मानते हैं, इसलिए जगह जगह लोग कावंरियों के पांव दबाकर कृतार्थ होते हैं।
मान्यतानुसार भगवान् भोलेनाथ को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने के लिए कांवर यात्रा सहज एवं सरल उपाय मानी जाती है। सावन माह में कांवर यात्रा और जलाभिषेक से प्रसन्न होकर शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भक्त 'हर हर महादेव एवं बोल बम’ का जयकारा लगाते हुए कांवड़ उठाकर शिव को जल अर्पित करने के लिए बेचैन रहते हैं। भक्त भगवान शिव का जलाभिषेक कर अपने कल्याण के साथ ही घर-परिवार की सुख-शांति एवं वैभव का वरदान प्राप्त करते हैं।
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