
Up Kiran, Digital Desk: जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला गाँव में स्थित माता खीर भवानी मंदिर, कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए सर्वोच्च आस्था का केंद्र है यह मंदिर जितना अपनी शांति और सुंदरता के लिए जाना जाता है, उतना ही अपने चमत्कारी पवित्र कुंड के लिए भी विख्यात है। मान्यता है कि इस कुंड के जल का रंग बदलना, क्षेत्र और दुनिया के भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देता है।
खीर भवानी या रागन्या देवी को समर्पित यह मंदिर एक पवित्र झरने या कुंड के ऊपर बना है। कश्मीरी पंडितों के लिए यह देवी उनकी कुलदेवी हैं और इस स्थान का महत्व अमरनाथ यात्रा के बाद सबसे अधिक है। ज्येष्ठ मास की अष्टमी तिथि पर यहां वार्षिक मेला आयोजित होता है, जिसमें देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हैं।
मंदिर परिसर के मध्य स्थित यह कुंड हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि इसके पानी का रंग मौसम और समय के साथ बदलता रहता है स्थानीय मान्यताओं और भक्तों के अनुभवों के अनुसार, कुंड के पानी का रंग बदलना शुभ या अशुभ घटनाओं की ओर इशारा करता है आमतौर पर, पानी का रंग साफ, दूधिया, सफेद या हल्के नीले/गुलाबी रंग का होना समृद्धि, शांति और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
इसके विपरीत, यदि कुंड का पानी काला या लाल/गहरा लाल हो जाए, तो इसे बेहद अशुभ और घाटी या व्यापक स्तर पर किसी आने वाली आपदा, संकट या अशांति का संकेत समझा जाता है। कई दशकों से इस तरह की भविष्यवाणियों को वास्तविक घटनाओं से जोड़ा जाता रहा है। उदाहरण के तौर पर, 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले पानी का रंग काला हो गया था।
कारगिल युद्ध और 2014 की कश्मीर बाढ़ से पहले भी पानी का रंग अशुभ देखा गया।यहाँ तक कि 2020 में COVID-19 महामारी के फैलने से पहले भी पानी के रंग में गहरापन देखा गया था।इंडिया टीवी की 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल कुंड का पानी गुलाबी देखा गया है, जिसने श्रद्धालुओं में नई उम्मीदें जगाई हैं।
मंदिर का नाम 'खीर भवानी' इस प्रथा से पड़ा है कि भक्त देवी को पारंपरिक रूप से 'खीर' (चावल की खीर) और दूध चढ़ाते हैं। पानी के रंग बदलने के पीछे कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं दी गई है, यह घटना भक्तों के लिए गहन आस्था और चमत्कार का विषय बनी हुई है, जो इसे कश्मीर घाटी के सबसे रहस्यमय और पवित्र स्थलों में से एक बनाती है
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