
bihar politics: बिहार की राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियाँ जैसे लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार की जदयू अब भी मजबूत हैं। जिसके चलते राष्ट्रीय पार्टियाँ जैसे भाजपा और कांग्रेस को यहाँ गठबंधन के बिना सफलता नहीं मिलती। बिहार की जाति-आधारित राजनीति में ये क्षेत्रीय दल अबूझ पहेली बने हुए हैं।
कांग्रेस ने हाल ही में राजद से दूरी बनाने की कोशिश की, जिसके संकेत प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बयान, स्वतंत्र पदयात्रा और कन्हैया कुमार-कृष्णा अल्लावरू की सक्रियता से मिले। कांग्रेस ने 70 सीटों की माँग की, मगर राजद ने सख्त रुख अपनाते हुए 40-50 सीटों का ऑफर दिया, वरना अकेले लड़ने को कहा। इससे कांग्रेस का "एकला चलो" का सपना टूट गया और अब वो अपनी विरासत और MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण वाली सीटों पर फोकस कर रही है।
दूसरी ओर भाजपा ने भी नीतीश कुमार को लेकर रणनीति बदली। अमित शाह ने पहले कहा था कि सीएम का फैसला पार्लियामेंट्री बोर्ड करेगा और प्रदेश नेताओं ने बिहार में भाजपा की सरकार बनाने की बात की। मगर जदयू के दबाव और नीतीश के बेटे निशांत की अपील के बाद भाजपा बैकफुट पर आई। आखिरकार नीतीश कुमार को एनडीए का सीएम चेहरा घोषित कर दिया गया।
राज्य में सीएम चेहरा तय करने को लेकर दोनों गठबंधनों में तनातनी दिखी, मगर क्षेत्रीय दलों की ताकत के आगे भाजपा और कांग्रेस को झुकना पड़ा।