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चीनी पीएलए के सैनिकों की साइज आपने देखी होगी। पांच फीट से थोड़ी ज्यादा उनकी साइज होती है। देखने में मरीज लगते हैं। हर तरह के मौसम में वह सर्वाइव ही नहीं कर पाते। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि देश विदेश की तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा काफी पहले से ही दावा किया जाता रहा है।

वहीं दूसरी ओर भारतीय सैनिकों की कदकाठी से आप भलीभांति परिचित होंगे। आपको बता दें कि पूरी दुनिया में सबसे कठिन सैन्य प्रशिक्षण भारत में होता है और उसके बाद पाकिस्तान का नंबर है। इस सूची में चीन टॉप टेन से ही बाहर है। मगर एक बार नहीं बल्कि कई बार यह हो चुका है कि चीनी पीएलए की भारतीय सैनिकों ने जमकर धुनाई की हो। कई बार तो ऐसा हो गया है कि भारत के सिख रेजिमेंट ने उनकी लंका लगा दी है।

सिख रेजिमेंट से डरता है चीन

आज आपको बताएंगे कि आखिर क्यों दुनिया का दादा बनने की कोशिश में लगा चीन। 175 साल पुराने सिख रेजिमेंट से डरता है। गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ में 24 साल के सिख सिपाही गुरतेज सिंह समेत चार सिख सैनिकों ने बहादुरी से चीनी सैनिकों की धुलाई की थी। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक सिख सैनिकों की वजह से ही गलवान से चीनी सैनिक भाग खड़े हुए थे। आप भी सोच रहे होंगे ऐसा कैसे हो सकता है। मगर ऐसा ही है और यह डर आज का और कल का डर नहीं है। बल्कि चीन का यह डर 100 साल से भी अधिक पुराना है।

आप सभी इस बात से वाकिफ होंगे कि चुशूल के ब्रिगेड हेडक्वार्टर के मेस में आज भी लाफिंग बुद्धा की एक सोने की मूर्ति रखी हुई है। इस मूर्ति को एक सदी पहले सिख सैनिकों ने ही चीन से जब्त किया था। उस वक्त सिख सैनिक आठ मुल्कों के उस मिशन का हिस्सा थे जिसमें चीन की बॉक्सर रिबेलियन को खत्म करना था। ये संगठन युवा किसानों और मजदूरों का संगठन था, जिसे विदेशी शक्तियों को खत्म करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था।

ब्रिटिश आर्मी ने उस समय सिख और पंजाब रेजिमेंट की मदद बाकी रेजिमेंट के साथ ली थी। सेनाएं बीजिंग में दाखिल हुई और उसके बाद बॉक्सर के लड़ाकों ने विदेशी जवानों को धमकाया। उन्होंने करीब 400 विदेशियों को बंधक बनाकर बीजिंग स्थित फॉरेन एलिगेशन क्वार्टर में रखा। 55 दिनों तक चले संघर्ष के लिए 20,000 जवान बीजिंग में दाखिल हुए थे। इन 20,000 जवानों में से 8000 जवान जो ब्रिटिश आर्मी के साथ थे, वे भारत से गए थे। इन जवानों में से अधिकतर जवान पंजाब और सिख रेजिमेंट से थे।

बीजिंग में सिख जवानों ने ऐसा कहर बरपाया कि बॉक्सर के लड़ाकों की नानी याद आ गई। सड़कों पर दौड़ा दौड़ाकर दुश्मनों का हिसाब हुआ था। कहा जाता है कि बीजिंग में जीत हासिल करने के बाद आदत से मजबूर ब्रिटिश आर्मी लूटपाट में लगे। मगर सिख सैनिक अपने मिशन में जी जान से लगे रहे। आपको बता दें कि चुशूल के ब्रिगेड हेडक्वार्टर के आर्मी मेस में लाफिंग बुद्धा की मूर्ति है। उन सामानों में शामिल थी जिसे जवान अपने साथ लेकर आए थे। 

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