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Roopkund lake: उत्तराखंड की रूपकुंड झील, जिसे "कंकालों की झील" के नाम से जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रही है। भारत के शीर्ष ट्रेकिंग स्थलों में से एक - रूपकुंड झील, जो त्रिशूल पर्वत के तल पर समुद्र तल से 16,500 फीट ऊपर स्थित है, सिकुड़ रही है, जिससे पर्यावरण कार्यकर्ता चिंता में हैं। रूपकुंड झील समुद्र तल से 16,500 फीट की ऊंचाई पर दो एकड़ में फैली हुई है।

एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में झील के सिकुड़ने की बात कही गई है। प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) सर्वेश दुबे के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि रूपकुंड झील की चौड़ाई और गहराई में हर साल लगभग 0.1 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत की कमी आ रही है।

रूपकुंड झील को क्यों कहा जाता है कंकालों की झील

रूपकुंड झील को कंकालों की झील कहा जाता है क्योंकि हिमनद के नीचे बहुत सारे मानव कंकाल छिपे हुए हैं, जिनमें से कुछ में मांस भी बचा हुआ है। जब इस क्षेत्र में बर्फ पिघलती है तो ये कंकाल नजर आने लगते हैं।

उन्होंने बताया कि पहले झील के आस-पास के क्षेत्र में अच्छी मात्रा में बर्फबारी होती थी, मगर आजकल इस क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है, जिससे हिमोढ़ झील में गिरता है, जिससे हिमनदों को नुकसान पहुँचता है। सर्वेश ने कहा कि वर्षा के पैटर्न में यह बदलाव सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ा हुआ है। अफसरों ने क्षेत्र के प्राकृतिक संतुलन को बदलने की तरफ इशारा किया।

उन्होंने आगे कहा कि अफसर इस समस्या के समाधान के लिए वन अनुसंधान संस्थान और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (डब्ल्यूआईएचजी) के विशेषज्ञों से मदद लेने का प्रयास कर रहे हैं।
 

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