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Up Kiran, Digital Desk: तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया है, जहां एक पिता ने अपने ही बेटे को पार्टी से निकाल दिया है। पट्टाली मक्कल काची (PMK) के संस्थापक, डॉ. एस. रामदॉस ने गुरुवार को एक चौंकाने वाला ऐलान करते हुए अपने बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबुमणि रामदॉस को पार्टी से निष्कासित कर दिया।

डॉ. रामदॉस ने अपने बेटे पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अंबुमणि को अनुशासनहीनता के 16 मामलों में दो बार नोटिस भेजा गया, लेकिन उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

अपने बेटे के नेतृत्व पर हमला बोलते हुए डॉ. रामदॉस ने उसे "राजनीतिक रूप से अयोग्य" बताया और उसकी तुलना "एक ऐसे खरपतवार से की, जिसे उखाड़ फेंकने की जरूरत है।" यह पारिवारिक और राजनीतिक फूट ऐसे समय में हुई है, जब अंबुमणि पूरे राज्य में सत्तारूढ़ डीएमके के खिलाफ एक बड़ा अभियान चला रहे थे और जल्द ही पार्टी के चुनावी गठबंधन की घोषणा करने वाले थे।

दूसरी तरफ, अंबुमणि के खेमे ने इस निष्कासन को अमान्य बताया है। उनका कहना है कि पार्टी की आम परिषद ने उनके अध्यक्ष के कार्यकाल को अगस्त 2026 तक बढ़ा दिया था और चुनाव आयोग ने भी इसे मंजूरी दी थी।

क्या है PMK और उसका राजनीतिक इतिहास?

PMK की स्थापना 1989 में डॉ. एस. रामदॉस ने वन्नियार समुदाय की राजनीतिक आवाज के रूप में की थी। वन्नियार, उत्तरी और मध्य तमिलनाडु में एक प्रभावशाली जाति समूह है, जिसे लगता था कि राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व कम है। 'आम' चुनाव चिह्न के साथ, PMK ने खुद को एक ऐसी क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया जो जातिगत पहचान और सामाजिक कल्याण, खासकर वन्नियारों के लिए, की वकालत करती है।

अपने इतिहास में, PMK चुनावी जरूरतों के हिसाब से तमिलनाडु की दोनों बड़ी पार्टियों, DMK और AIADMK, के साथ-साथ बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ भी गठबंधन करती रही है।

राजनीतिक सफर: पार्टी का सुनहरा दौर 2000 के दशक की शुरुआत में था, जब 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA के साथ गठबंधन में उसने 6 लोकसभा सीटें जीती थीं। इसी दौरान अंबुमणि रामदॉस मनमोहन सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने थे। हालांकि, इसके बाद पार्टी का प्रदर्शन गिरता गया और 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी।

वोट बैंक: विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 5-6% के आसपास रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आई है। इसके बावजूद, वन्नियार-बहुल जिलों में आज भी पार्टी का प्रभाव बरकरार है।

इस पारिवारिक लड़ाई का तमिलनाडु की राजनीति पर क्या होगा असर?

वोट बैंक में बिखराव: अगर पिता-पुत्र के इस संघर्ष से पार्टी में गुटबाजी होती है, तो PMK का पारंपरिक वन्नियार वोट बैंक बंट सकता है। इससे चुनावों में पार्टी का प्रभाव कमजोर होगा।

गठबंधन की राजनीति पर असर: PMK, एनडीए में बीजेपी की सहयोगी रही है, लेकिन इस आंतरिक कलह से उसकी मोलभाव की शक्ति कम हो सकती है। बड़ी पार्टियां एक ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन करने से कतरा सकती हैं, जो अंदर से टूटी हुई हो।

जनता में छवि: पारिवारिक लड़ाई, एक-दूसरे पर सार्वजनिक आरोप-प्रत्यारोप से पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का भरोसा कम होता है, जो एक स्थिर नेतृत्व चाहते हैं।

आने वाले चुनावों पर प्रभाव: तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह संघर्ष सीट-बंटवारे, प्रचार और वोट शेयर पर सीधा असर डालेगा। एक कमजोर PMK का फायदा उसके प्रतिद्वंद्वियों (DMK, AIADMK और अन्य जाति-आधारित पार्टियों) को मिल सकता है।

फिलहाल, PMK का यह झगड़ा सुलझता नहीं दिख रहा है। अब यह देखना होगा कि क्या अंबुमणि अपने निष्कासन को स्वीकार करते हैं, या इसके खिलाफ कानूनी या चुनावी लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन तमिलनाडु की राजनीति के लिए यह सिर्फ एक पारिवारिक लड़ाई नहीं है - इसमें गठबंधन, वोटों का गणित और PMK के भविष्य को बदलने की पूरी क्षमता है।