
Up Kiran, Digital Desk: भारतीय वायुसेना से एक बड़ी खबर सामने आ रही है, और यह देश की सैन्य उड्डयन के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय वायुसेना (IAF) सितंबर महीने तक अपने प्रतिष्ठित MiG-21 लड़ाकू विमानों को चरणबद्ध तरीके से बाहर करने जा रही है। यह दशकों पुराने इस बेड़े के एक युग के अंत का प्रतीक होगा।
एक लंबा और विवादास्पद सफ़र:
MiG-21 लड़ाकू विमान, जिसे अक्सर 'फ्लाइंग कॉफिन' (उड़ता ताबूत) के नाम से भी जाना जाता रहा है, ने दशकों तक भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया है। सोवियत संघ द्वारा डिज़ाइन किया गया यह विमान 1960 के दशक से भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा कर रहा है। इसने 1971 के युद्ध जैसे कई बड़े संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अपनी लंबी सेवा और कई युद्धों में शानदार प्रदर्शन के बावजूद, MiG-21 विमान हाल के वर्षों में अपनी सुरक्षा को लेकर लगातार सवालों के घेरे में रहे हैं। इसके पुराने पड़ चुके डिज़ाइन और लगातार दुर्घटनाओं के कारण इसे लेकर चिंताएं बढ़ गई थीं, जिनमें कई जांबाज पायलटों की जान गई है। वायुसेना के पायलटों और तकनीकी स्टाफ के अथक प्रयासों के बावजूद, इन विमानों को उड़ाना हमेशा जोखिम भरा रहा है।
आधुनिकीकरण की ओर एक ज़रूरी कदम:
वायुसेना इन विमानों के बचे हुए स्क्वाड्रनों को सितंबर तक पूरी तरह से रिटायर कर देगी। यह कदम भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण और अपने बेड़े को अधिक सुरक्षित व तकनीकी रूप से उन्नत बनाने की दिशा में एक बड़ा हिस्सा है। सरकार और वायुसेना दोनों ही अपने बेड़े को आधुनिक बनाने और दुर्घटनाओं के जोखिम को कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
MiG-21 की जगह अब भारतीय वायुसेना में राफेल, सुखोई-30 MKI और स्वदेशी तेजस जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान ले रहे हैं। ये विमान न केवल अधिक सुरक्षित हैं, बल्कि तकनीकी रूप से भी कहीं ज़्यादा उन्नत हैं, जो भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं।
MiG-21 का जाना भारतीय वायुसेना के इतिहास में एक युग का अंत होगा। यह विमान भारतीय वायुसेना के साथ कई ऐतिहासिक क्षणों का गवाह रहा है, लेकिन समय के साथ कदम मिलाते हुए अब इसे एक सुरक्षित और आधुनिक बेड़े के लिए रास्ता बनाना होगा। यह वायुसेना के आधुनिकीकरण के एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो देश की हवाई सुरक्षा को और मजबूत करेगा।
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