Up Kiran, Digital Desk: सीआईए के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाको ने हालिया साक्षात्कार में कहा कि 2002 के आसपास उन्हें जानकारी मिली थी कि पेंटागन का पाकिस्तानी परमाणु उपकरणों पर कुछ नियंत्रण है. उन्होंने बताया कि तब के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को यह बात लेकर भय था. किरियाको ने कहा कि बाद में पाकिस्तान की तरफ से इस दावे का खंडन भी हुआ.
किरियाको के अनुसार अमेरिका ने मुशर्रफ का साथ पाने के लिए भारी आर्थिक और सैन्य मदद दी. उन्होंने इसे खरीदारी जैसा बताया. उनका कहना था कि लोकतांत्रिक चिंताओं से बचने के लिए अमेरिका अक्सर कड़े शासकों के साथ काम करता है. इस दृष्टिकोण ने कई नीतिगत फैसलों को आकार दिया.
एक और विवादास्पद मोड़ ए.क्यू. खान और परमाणु प्रसार का है. किरियाको ने कहा कि उस दौर में सऊदी अरब ने अमेरिका से कहा था कि खान को अकेला छोड़ दिया जाए. वे बताए कि सऊदी और पाक तालमेल में उस समय एक स्पष्ट व्यापारिक और सुरक्षा समझ थी. किरियाको ने यह भी कहा कि सऊदी की भौतिक सुरक्षा में पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों की अहम भूमिका रही है.
कथित तौर पर पाकिस्तानी जनरलों का प्रभाव अगर सचमुच परमाणु प्रणालियों पर रहा होता तो यह एक बड़ी चिंताजनक बात बनती. किरियाको ने कहा कि नियंत्रण किसके हाथ में है, यह राजनीतिक स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. वे इस असमंजस पर गम्भीर चिंता जताते दिखे.
किरियाको ने अमेरिका की विदेश नीति की नैतिक द्वेषपूर्ण व्याख्या भी की. उन्होंने कहा कि चुनिंदा नैतिकता ने कई निर्णयों को प्रभावित किया. तानाशाहों से सहयोग का कारण यह रहा कि उन्हें जनमत और मीडिया की मंशा की चिंता कम रहती थी. इसलिए रणनीतिक फायदे अक्सर नैतिक सवालों से ऊपर रखे गए.
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