
Up Kiran, Digital Desk: बॉलीवुड को हमेशा से शादियों से प्यार रहा है. 'हम आपके हैं कौन' से लेकर 'बैंड बाजा बारात' और हाल ही में आई 'जुगजुग जीयो' तक, 'शादी वाली फिल्म' एक ऐसा जॉनर बन गया है जिसमें रंग, ड्रामा, रोमांस और डांस का तड़का होता है. शशांक खेतान के निर्देशन में बनी 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' भी इसी क्लब में शामिल होती है, जो एक भव्य देसी शादी के माहौल में कॉमेडी, रोमांस और इमोशनल ड्रामा का वादा करती है. कागज पर, इसमें एक हिट फिल्म के सारे मसाले हैं: एक लव ट्रायंगल, नकली डेटिंग, अनोखे परिवार वाले, एक शानदार सेटिंग और ढेर सारी बॉलीवुड की चमक-दमक. लेकिन यह पर्दे पर कैसा लगता है? आइए जानते हैं.
कहानी: कहानी शुरू होती है तथाकथित 'संस्कारी' सनी से, जिसकी जिंदगी पारिवारिक जिम्मेदारियों और अपनी निजी उलझनों में फंसी हुई है. उसकी मुलाकात तुलसी से होती है, जो खुद भी दिल टूटने और komplizierten भावनाओं से जूझ रही है. इन सबके बीच, दूसरों को जलाने और अपनी-अपनी लव लाइफ को पटरी पर लाने के लिए एक नकली रोमांस का प्लान बनाया जाता है. ज़ाहिर है, बॉलीवुड की परंपरा के अनुसार, नकली प्यार अक्सर असली प्यार में बदल जाता है, और यह फिल्म भी उसी रास्ते पर चलती है.
कहानी में जलने वाले एक्स-लवर्स, अजीब मुलाकातें, शोर मचाने वाले रिश्तेदार और शादी का आम हो-हल्ला भी डाला गया है. अगर आपने पहले रोमांटिक-कॉमेडी देखी है, तो आपको इसमें कुछ भी नया नहीं लगेगा. गलतफहमियां, बड़े-बड़े डांस नंबर, इमोशनल खुलासे और एक ऐसा क्लाइमेक्स जहां टूटे हुए दिल जुड़ जाते हैं - इसमें सारे टिपिकल धर्मा प्रोडक्शन वाले मसाले हैं. लेकिन जो चीज फिल्म को उबाऊ और predictable होने से बचाती है, वह है इसके कलाकारों की एनर्जी और इसका फेस्टिव मूड.
निर्देशन और लेखन: हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया', 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' और 'धड़क' के डायरेक्टर शशांक खेतान बॉलीवुड की रॉम-कॉम फिल्मों का व्याकरण अच्छी तरह जानते हैं. 'सनी संस्कारी...' में भी उनका निर्देशन énergique, चमकदार और मनोरंजन पर केंद्रित है. उन्होंने शादी के दृश्यों को भव्यता के साथ फिल्माया है, जिससे हर फ्रेम रंगीन और शानदार दिखता है. लेकिन जहां वह चूक जाते हैं, वह है मस्ती और गहराई के बीच संतुलन बनाने में. इमोशनल ड्रामा के संकेत तो हैं, लेकिन फिल्म के कॉमेडी या गाने पर वापस लौटने से पहले उन्हें उभरने का मौका ही नहीं मिलता.
शशांक खेतान और इशिता मोइत्रा का लेखन भी इसी ताकत और कमजोरी को दर्शाता है. डायलॉग्स अक्सर मज़ेदार और सटीक होते हैं, जो फिल्म को हल्के-फुल्के पल देते हैं. लेकिन पूरी पटकथा घिसे-पिटे फॉर्मूलों पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है नकली रिश्ते का ड्रामा, जलने वाला एक्स, क्लाइमेक्स में शादी का ड्रामा - ये सभी चीज़ें हम कई रॉम-कॉम में देख चुके हैं. एक कसी हुई स्क्रिप्ट और ज्यादा इमोशनल गहराई इस फिल्म को 'मज़ेदार टाइमपास' से 'यादगार एंटरटेनर' बना सकती थी.
तकनीकी पहलू: यह फिल्म पूरी तरह से चमकदार है. भव्य शादी के सेट से लेकर डिजाइनर कॉस्ट्यूम तक, हर फ्रेम 'बड़ी बॉलीवुड शादी' की गवाही देता है. प्रोडक्शन डिजाइन की तारीफ होनी चाहिए क्योंकि यह एक जीवंत और जश्न का माहौल बनाता है, भले ही कभी-कभी यह एक फैशन शो जैसा ज्यादा लगता हो. खासकर उदयपुर वाले हिस्से को बहुत अच्छे से शूट किया गया है.
संगीत, énergique होने के बावजूद, कोई यादगार गाना नहीं दे पाता. कुछ आकर्षक गाने हैं जो डांस सीक्वेंस के दौरान अच्छे लगते हैं, लेकिन थिएटर से निकलने के बाद आप शायद उन्हें गुनगुनाएंगे नहीं. फिर भी, कोरियोग्राफी मजेदार है.
अभिनय: वरुण धवन 'सनी संस्कारी...' में अपने सेफ ज़ोन में खेल रहे हैं. वह énergique, प्यारे हीरो की भूमिका में हैं, जो मज़ाकिया, ईमानदार है और जिसकी कॉमिक टाइमिंग अच्छी है. हालांकि उनके कुछ इमोशनल पल थोड़े सतही लगते हैं, लेकिन उनकी सहज स्क्रीन उपस्थिति सनी के किरदार को पूरी फिल्म में पसंद करने लायक बनाए रखती है.
दूसरी ओर, जान्हवी कपूर को सूक्ष्म भावनाओं के साथ खेलने का अधिक मौका मिलता है. उनका किरदार, तुलसी, अतीत के दिल टूटने और नई संभावनाओं के बीच फंसा है और वे इसे किसी तरह निभा ले जाती हैं. हालांकि, वरुण के साथ उनकी केमिस्ट्री कभी-कभी अधूरी लगती है; यह कुछ दृश्यों में काम करती है, लेकिन हमेशा नहीं.
इसके अलावा, जहां वह इमोशनल दृश्यों को अच्छी तरह से संभाल लेती हैं, वहीं जान्हवी कॉमेडी फ्रेम में कमजोर दिखती है. वह फिल्म के शानदार कॉस्ट्यूम्स में बहुत खूबसूरत लगती हैं, लेकिन ग्लैमर के परे, वह केवल कुछ ही पलों में तुलसी को कमजोर और relatable बना पाती हैं.
उम्मीद के मुताबिक, सहायक जोड़ी सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ फिल्म में जान डालते हैं. सान्या का प्रदर्शन कहानी को ज़मीन से जोड़ता है, जबकि रोहित सराफ का आकर्षक अंदाज़ एक अलग एनर्जी लाता है. कई मायनों में, उनका ट्रैक मुख्य कहानी से ज्यादा आकर्षक लगता है. मनीष पॉल फिल्म में कॉमिक रिलीफ हैं और वह अपना काम अच्छे से करते हैं.
क्या अच्छा है?यह एक अच्छा टाइमपास एंटरटेनर है. अगर आप एक हल्की-फुल्की, रंगीन रॉम-कॉम की तलाश में हैं, तो यह फिल्म आपके लिए है.
फिल्म में सिचुएशनल कॉमेडी और मज़ेदार डायलॉग्स हैं जो इसे मनोरंजक बनाते हैं.
प्रोडक्शन की भव्यता प्रभावशाली है. फिल्म खुद को एक फेस्टिव एंटरटेनर के रूप में पेश करती है और इस भूमिका को पूरी तरह से निभाती है.
क्या काम नहीं करता?फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी prévisibilité है. आप हर मोड़ का अनुमान लगा सकते हैं, यहां तक कि क्लाइमेक्स का भी.
यह फिल्म दिल टूटने और धोखे जैसे विषयों को छूती तो है, लेकिन कभी भी गहराई में नहीं जाती. भावनाएं सतह पर रहती हैं, जिससे क्लाइमेक्स कम प्रभावी लगता है.
वरुण और जान्हवी की केमिस्ट्री में स्पार्क की कमी है. कभी-कभी आप मुख्य रोमांस से ज्यादा सहायक किरदारों में दिलचस्पी लेने लगते हैं.
फिल्म घिसे-पिटे फॉर्मूलों पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जिससे यह उन रॉम-कॉम का रीमिक्स लगती है जो हम पहले ही देख चुके हैं.
आख़िरी फैसला: सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' उन दर्शकों के लिए बनी है जो हल्के-फुल्के बॉलीवुड मनोरंजन का आनंद लेते हैं. यह उन परिवारों, जोड़ों और वरुण-जान्हवी के प्रशंसकों को पसंद आएगी जो एक मज़ेदार फिल्म देखना चाहते हैं. यह फिल्म कोई कालजयी सिनेमा बनने का लक्ष्य नहीं रखती, बल्कि खुद को एक आसान, रंगीन एंटरटेनर के रूप में पेश करती है.
हां, यह prévisible है और क्लिच पर निर्भर है. लेकिन फिल्म का दिल सही जगह पर है. एक तरह से, 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी' शादी के उस जाने-पहचाने पकवान की तरह है जिसे आपने सौ बार खाया है. आप जानते हैं कि इसका स्वाद कैसा है, यह आपको आश्चर्यचकित नहीं करेगा, लेकिन फिर भी आप इसे मुस्कान के साथ खाते हैं क्योंकि यह आपको अच्छा महसूस कराता है.