
Up Kiran, Digital Desk: ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में स्थित कनकपुर के पास, महान संत अरक्षित दास के पवित्र साधना स्थल 'भुवन बावा' में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और रहस्यमय शिलालेख की पुनर्खोज हुई है। यह खोज न केवल इतिहास प्रेमियों, बल्कि आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए भी गहरी रुचि का विषय बन गई है।
यह शिलालेख संत अरक्षित दास द्वारा स्वयं रचित 'महासुन्नी' नामक एक ताड़पत्र ग्रंथ के ठीक ऊपर पाया गया है। इसे पहली बार स्थानीय शोधकर्ता शरत चंद्र रथ और कटक के पूर्व पोस्टमास्टर आर.सी. दास ने देखा। उन्होंने इस शिलालेख की तस्वीरें और विवरण 'उत्कल दीपिका' पत्रिका में प्रकाशित किए, जिससे यह खोज प्रकाश में आई।
यह शिलालेख अतीत में कुछ समय के लिए गुमनामी में चला गया था, लेकिन अब इसकी पुनर्खोज से संत अरक्षित के जीवन और उनकी शिक्षाओं के बारे में नई जानकारी मिलने की उम्मीद है। महासुन्नी ग्रंथ, जो उनके आध्यात्मिक अनुभवों और दर्शन का सार है, के साथ इस शिलालेख का पाया जाना इसकी महत्ता को और बढ़ा देता है।
संत अरक्षित दास ओडिशा के एक प्रमुख संत और कवि थे, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में 'महिमा धर्म' के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया। उन्होंने सरल भाषा में आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार किया और समाज में समानता और भाईचारे पर जोर दिया। उनका साधना स्थल भुवन बावा एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र रहा है, जहाँ आज भी उनके अनुयायी आते हैं।
इस शिलालेख की गहन जांच और विश्लेषण से संत अरक्षित के आध्यात्मिक कार्यों और तत्कालीन समाज पर उनके प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी। यह खोज ओडिशा की समृद्ध धार्मिक और साहित्यिक विरासत में एक नया अध्याय जोड़ती है, जिससे भविष्य के शोधकर्ताओं के लिए भी नए रास्ते खुलेंगे।
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