Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड को जब एक अलग राज्य का दर्जा मिला था, तो 25 हज़ार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की क्षमता के साथ इसे 'ऊर्जा प्रदेश' का नाम दिया गया था। यह नाम एक सुनहरे भविष्य की ओर इशारा कर रहा था, जहाँ राज्य न केवल अपनी ज़रूरतें पूरी करेगा बल्कि देश को भी बिजली देगा। लेकिन पिछले 25 वर्षों की यात्रा देखें तो यह सपना अभी तक पूरी तरह ज़मीन पर नहीं उतर पाया है।
आंकड़ों की बात करें तो, इन ढाई दशकों में उत्तराखंड केवल 4264 मेगावाट बिजली उत्पादन ही शुरू कर पाया है। यह उस विराट संभावना के सामने बहुत कम है जिसके चलते राज्य को यह गौरवपूर्ण नाम मिला था।
परियोजनाएं अटकीं तो बढ़ी बाज़ार की निर्भरता
राज्य में कई बिजली परियोजनाएं हैं जिन्हें सरकार से मंज़ूरी मिल चुकी है, लेकिन वे पर्यावरण नियमों और विभिन्न कानूनी अड़चनों के जाल में उलझकर रह गई हैं। कभी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) तो कभी वन एवं पर्यावरण मंत्रालय या जल संसाधन मंत्रालय के पेंच, और कई बार तो मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच जाता है। आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने भी 2122 मेगावाट क्षमता की 21 परियोजनाओं को हरी झंडी दी थी, फिर भी वे अभी तक शुरू नहीं हो पाई हैं।
राज्य की अपनी बिजली कंपनी यूजेवीएनएल का कुल उत्पादन इसमें सिर्फ़ 1460 मेगावाट है।
इधर, राज्य में घरों और उद्योगों की बढ़ती ज़रूरतों ने बिजली की मांग को लगातार बढ़ाया है, जिससे उत्पादन और मांग के बीच एक बड़ा फासला आ गया है। इस अंतर को पाटने के लिए सरकार बाज़ार से महंगी बिजली खरीदने को मजबूर है, जिस पर सालाना खर्च आठ हज़ार करोड़ रुपये को पार कर गया है।
गठन के समय 'पावर सरप्लस' था उत्तराखंड
यह जानकर हैरानी होगी कि जब उत्तराखंड का गठन हुआ था, तब यह 'पावर सरप्लस' राज्य था। उस समय बिजली की सालाना ज़रूरत 3030 मिलियन यूनिट (एमयू) थी, जबकि उत्पादन 3350 एमयू था। यानी मांग से अधिक उत्पादन।
लेकिन तेज़ी से हुए औद्योगीकरण और हर साल लगभग एक लाख नए बिजली उपभोक्ताओं के जुड़ने से मांग बढ़कर 17192 एमयू सालाना हो गई। वहीं, उत्पादन सिमटकर मात्र 5175 एमयू पर ही रह गया। आज मांग और आपूर्ति में 12017 एमयू का एक बड़ा गैप है, जिसने 'ऊर्जा प्रदेश' के नाम को चुनौती दी है।
धामी सरकार का 'नया पावर प्लान': वैकल्पिक ऊर्जा पर ज़ोर
दिवंगत एनडी तिवारी ने 'ऊर्जा प्रदेश' के सपने को हकीकत में बदलने की जो कल्पना की थी, उसे अब मौजूदा धामी सरकार आगे बढ़ाती दिख रही है। अब सरकार पारंपरिक हाइड्रो पावर के साथ-साथ कई नए क्षेत्रों में प्रयोग कर रही है ताकि बाज़ार की महंगी बिजली पर निर्भरता कम हो सके।
थर्मल पावर: यह सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे 1360 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद है।
नए विकल्प: जियो थर्मल, हाइड्रोजन पावर, न्यूक्लियर पावर, पंप स्टोरेज प्लांट और बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ठोस काम शुरू हुआ है।
सरकार ने 2030 तक बिजली उत्पादन को बढ़ाकर 13529 मेगावाट तक पहुँचाने की तैयारी की है।
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