
Up Kiran, Digital Desk: भारतीय सिनेमा में नाना पाटेकर एक ऐसा नाम है जो अपनी दमदार अदाकारी और सादगी भरी जिंदगी के लिए जाने जाते हैं। विश्वनाथ पाटेकर, जिन्हें हम सब नाना पाटेकर के नाम से जानते हैं, फिल्मी दुनिया का हिस्सा होकर भी सालों से एक अलग तरह का जीवन जीते आए हैं। कैलिग्राफी से लेकर अचूक निशानेबाजी तक में माहिर इस अभिनेता ने न सिर्फ अपनी आवाज़ से किरदारों में जान फूंकी, बल्कि भारतीय सेना में एक फ्रंटलाइन वॉरियर के तौर पर भी सेवाएं दी हैं। आज वे खेती-किसानी के साथ-साथ चैरिटी के कामों में भी सक्रिय रहते हैं। और हाँ, वे भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में वॉर ज़ोन में तैनात भी रहे हैं। हिंदी और मराठी सिनेमा के यह दिग्गज आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं और भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली अभिनेताओं में गिने जाते हैं।
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि अभिनेता नाना पाटेकर ने भारतीय सेना का हिस्सा बनकर भी देश की सेवा की है। कारगिल युद्ध को आधुनिक भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में गिना जाता है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच हुई आखिरी बड़ी लड़ाई थी। इस युद्ध में जब हमारे जवान अपनी जान की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा कर रहे थे, तब देश के बाकी लोग भी उनके समर्थन में आगे आए। किसी ने आर्थिक मदद की, तो किसी ने उनका हौसला बढ़ाया। इसी दौरान, नाना पाटेकर ने अपने अभिनय करियर को दांव पर लगा दिया था। उस समय तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके नाना अपने करियर के शिखर पर थे, लेकिन उन्होंने फिल्मों से दूरी बनाकर भारतीय सेना में एक फ्रंटलाइन वॉरियर के रूप में देश सेवा को चुना।
जॉर्ज फर्नांडिस से ली अनुमति
उन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस से मुलाकात की और उनकी स्वीकृति के बाद वे जंग के मैदान में पहुँच गए। फर्नांडिस ने उन्हें मातृभूमि के लिए लड़ने की अनुमति दे दी थी। नाना पाटेकर ने कारगिल युद्ध के दौरान देश के साथ खड़े होने के लिए अपने बॉलीवुड करियर से ब्रेक लिया और विभिन्न क्षेत्रों में तैनात रहे।
दरअसल, नाना पाटेकर ने 1990 के दशक की शुरुआत में अपनी फिल्म 'प्रहार' की तैयारी के लिए सेना की मराठा लाइट इन्फैंट्री के साथ तीन साल तक गहन प्रशिक्षण लिया था। इसलिए जब कारगिल युद्ध छिड़ा, तो उन्होंने डिवीज़न के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया और मोर्चे पर जवानों के साथ शामिल होने की अनुमति मांगी, लेकिन शुरुआत में उन्हें मना कर दिया गया। पर नाना ने हार नहीं मानी। जब उन्हें बताया गया कि केवल रक्षा मंत्री ही उनकी तैनाती को मंजूरी दे सकते हैं, तो उन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस से संपर्क किया। नाना ने रक्षा मंत्री को बताया कि वे एक नेशनल लेवल शूटर रहे हैं और तीन साल का सैन्य प्रशिक्षण भी ले चुके हैं, इसलिए उन्हें युद्ध में जाने की अनुमति दी जाए।
घट गया था 20 किलो वज़न
जल्द ही नाना पाटेकर को भारतीय सेना में मानद कैप्टन के तौर पर अग्रिम मोर्चे पर शामिल कर लिया गया। अगस्त 1999 में वे नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भी तैनात रहे। खुद नाना ने बताया था कि वे मुगलपुरा, द्रास, लेह, कुपवाड़ा, बारामूला और सोपोर जैसी जगहों पर तैनात रहे थे। उन्होंने अस्पताल बेस में भी काम किया था। इस युद्ध का उन पर गहरा असर पड़ा और इस दौरान उनका 20 किलो से ज़्यादा वज़न कम हो गया था। उन्होंने बताया था, "जब मैं श्रीनगर पहुँचा तो मेरा वज़न 76 किलोग्राम था। जब मैं वापस आया तो मेरा वज़न 56 किलोग्राम हो गया।" आपको बता दें कि नाना पाटेकर को सेना में मानद कैप्टन का पद दिया गया था, जिससे वे 62 साल की उम्र में रिटायर हुए।
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