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Up Kiran, Digital Desk: मुंबई में हुए भयावह ट्रेन ब्लास्ट मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी घटनाक्रम सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें इस मामले के सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम पीड़ितों के परिवारों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए न्याय की उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है।

क्या था मुंबई ट्रेन ब्लास्ट? यह मामला 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सीरियल बम धमाकों से संबंधित है। 11 जुलाई 2006 को, मुंबई की उपनगरीय रेलवे प्रणाली पर लगभग 11 मिनट के भीतर सात बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 180 से अधिक लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। यह भारत में हुए सबसे घातक आतंकवादी हमलों में से एक था।

कानूनी यात्रा और हाई कोर्ट का फैसला: इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था और एक विशेष अदालत ने बाद में कुछ आरोपियों को दोषी ठहराया था। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था, जिससे पीड़ितों के परिवारों में निराशा और न्याय पर सवाल खड़े हो गए थे। हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी या अन्य कानूनी आधारों पर उन्हें बरी किया था।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं (जिसमें संभवतः महाराष्ट्र सरकार या पीड़ितों के परिवार शामिल हों) ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट का फैसला सबूतों का सही मूल्यांकन करने में विफल रहा और आतंकवाद जैसे गंभीर अपराध में न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर विचार करते हुए, बॉम्बे हाई कोर्ट के बरी करने के फैसले पर 'स्टे' लगा दिया है। इसका मतलब है कि अब हाई कोर्ट का वह फैसला फिलहाल लागू नहीं होगा और आरोपियों की रिहाई भी रुक जाएगी। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की फिर से सुनवाई करेगा और सबूतों और कानूनी पहलुओं का गहराई से मूल्यांकन करेगा।

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