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Up Kiran, Digital Desk: भारत की एक नर्स जो कभी अपने बेहतर भविष्य के लिए यमन गई थीं आज वहीं अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग लड़ रही हैं। केरल की रहने वाली निमिषा प्रिया को 2020 में यमन की एक अदालत ने हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी। अब जबकि फांसी की तारीख नज़दीक थी भारत सरकार और सामाजिक-धार्मिक संगठनों के हस्तक्षेप से उसे कुछ समय की राहत जरूर मिली है लेकिन राहत की यह सांस कब तक कायम रहेगी यह स्पष्ट नहीं है।

थोड़े वक्त के लिए रुकी फांसी लेकिन खतरा अभी भी बना हुआ

मंगलवार 15 जुलाई को यह खबर आई कि निमिषा की फांसी फिलहाल स्थगित कर दी गई है। उसे 16 जुलाई को फांसी दी जानी थी लेकिन भारत की ओर से किए गए राजनयिक प्रयास और कई इस्लामिक धर्मगुरुओं की मानवीय अपीलों के कारण उसकी सजा को कुछ समय के लिए टाल दिया गया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह स्थगन कब तक रहेगा और क्या यह स्थायी राहत में बदल पाएगा।

यमन में भारत का दूतावास न होने की वजह से हालात और भी मुश्किल हैं। ऐसे में मुफ्ती शेख कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार ने यमनी प्रशासन और वहां के धार्मिक नेताओं से व्यक्तिगत रूप से संपर्क साधा है। उन्होंने इस्लामी कानून (शरिया) के तहत "माफी" दिलवाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। उनका मानना है कि राष्ट्रीयता और मानवता दोनों की भावना से यह एक जरूरी पहल है।

पीड़ित परिवार की सख्ती बनी सबसे बड़ी बाधा

इस मामले में सबसे अहम भूमिका मृतक तलाल अब्दो महदी के परिजनों की है जो अब तक किसी भी प्रकार की माफी देने को तैयार नहीं हैं। शरिया कानून के अनुसार अगर पीड़ित परिवार ब्लडमनी (मुआवजा) स्वीकार कर ले तो दोषी को माफ किया जा सकता है। हालांकि तलाल महदी का परिवार साफ तौर पर कह चुका है कि वे पैसे नहीं इंसाफ चाहते हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक परिवार की मांग है कि “किसास” लागू हो – यानी जैसा अपराध वैसी सजा। तलाल के भाई अब्देल फतेह का कहना है कि निमिषा प्रिया ने उनके भाई की न सिर्फ हत्या की बल्कि शव को क्षत-विक्षत कर छिपाने की भी कोशिश की जो किसी भी कीमत पर माफ करने योग्य नहीं है।

निमिषा की जिंदगी की कहानी

निमिषा प्रिया एक सामान्य परिवार से हैं जिन्होंने जीवन में आगे बढ़ने के लिए नर्सिंग का कोर्स किया और 2008 में नौकरी के सिलसिले में यमन पहुंचीं। 2011 में उन्होंने टॉमी थॉमस से विवाह किया और राजधानी सना में रहने लगीं। वहां उनकी एक बेटी भी हुई। जीवन को बेहतर बनाने के इरादे से उन्होंने तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक मेडिकल क्लिनिक की शुरुआत की। लेकिन यह साझेदारी बाद में एक गंभीर विवाद में बदल गई जिसका अंत एक हत्या और मौत की सजा में हुआ।

क्या है आगे की राह?

फिलहाल तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। धार्मिक संगठनों की पहल और भारतीय सरकार की सक्रियता से समय जरूर मिला है लेकिन अंतिम फैसला तो यमनी न्याय व्यवस्था और पीड़ित परिवार की मर्जी पर निर्भर है। यदि किसी प्रकार का समझौता नहीं होता तो निमिषा की जिंदगी खतरे में बनी रहेगी।

हर बीतते दिन के साथ यह मामला और अधिक संवेदनशील होता जा रहा है। अब देखना यह है कि क्या मानवता की आवाज़ इंसाफ की सख्ती को संतुलित कर पाएगी या फिर एक भारतीय नर्स की जिंदगी विदेशी ज़मीन पर समाप्त हो जाएगी।