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Up Kiran, Digital Desk: अगर आप अब तक सोचते आ रहे हैं कि भारत का सबसे करीबी दोस्त अमेरिका की चमचमाती इमारतों के पीछे छिपा है, रूस की सर्द हवाओं में बसा है, या फिर ब्रिटेन और जर्मनी की राजशाही गलियों में घूमता है, तो आप अभी भी एक पुरानी गलतफहमी के साथ जी रहे हैं।
हकीकत कुछ और है। निवेश की दुनिया में भारत का सबसे घनिष्ठ मित्र न तो कोई महाशक्ति है, न ही कोई पश्चिमी सहयोगी। यह देश आकार में भले ही छोटा हो मगर उसकी सोच उसकी रणनीति और उसकी नज़ाकत उतनी ही बारीक है जितनी किसी शतरंज के माहिर खिलाड़ी की। और ये देश है सिंगापुर।
सिंगापुर बीते सात वर्षों से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है। न कोई शोर, न कोई दिखावा सिर्फ सटीक रणनीति, स्थायित्व और भरोसे के साथ निवेश करता आया है ये देश।
पिछले वित्त वर्ष की बात करें, तो सिंगापुर ने भारत में 1.28 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया, जो अमेरिका और जापान जैसे दिग्गजों के निवेश के मुकाबले तीन से पांच गुना ज्यादा था। इस आंकड़े ने भारत में निवेश के नक्शे को ही बदल दिया।
सात वर्षों की मजबूत दोस्ती
2018-19 से लेकर 2024-25 तक, सिंगापुर भारत के लिए उस नदी की तरह रहा है जो सूखे मौसम में भी जल देती है। 2024-25 में सिंगापुर से भारत को लगभग 15 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त हुआ। पूरे साल के दौरान भारत को मिले कुल एफडीआई में यह लगभग 19 प्रतिशत का हिस्सा था – यानी हर पांचवां डॉलर सिंगापुर से आया।
भारत के आर्थिक आकाश में सिंगापुर एक स्थिर तारा बन चुका है, जिसकी रोशनी न केवल साफ दिखती है बल्कि दिशा भी देती है।
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